SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अन्तिम रूप से परिष्कृत तथा परिवर्धित प्रस्तुत संस्करण की भूमिका पूर्व संस्करणके समान इस बार भी अन्तिम रूप से परिष्कृत एवं परिवधित संस्करण के तीनों भागों का मुद्रण एक ही साथ कर रहा हूं। संशोधन, परिवर्धन, परिष्करण संशोधन-तृतीय भाग के इस संस्करण में से पूर्व संस्करणस्थ सातवां परिशिष्ट, जिसमें भर्तृहरि कृत महाभाष्यदीपिका के दोनों भागों में उद्धृत पाठों पर निर्दिष्ट हस्तलेख की पृष्ठ संख्याकी पूना से मुद्रित ग्रन्थ की पृष्ठ संख्या से जो तुलनात्मक सूची छापी थी, उसे निकाल दिया है । इस बार मुद्रित ग्रन्थ की पृष्ठ संख्या भी तत्तत् उद्धरण के साथ दे दी है। परिवर्धन-इस वार चार परिशिष्ट नये जोड़े हैं । सातवें परिशिष्ट में समुद्रगुप्त-विरचित कृष्णचरित का जो स्वल्प भाग उपलब्ध हुआ है उसे दे दिया हैं, क्योंकि इस ग्रन्थ में प्रस्तुत कृष्णचरित के अनेक स्थानों पर पाठ उधत किये हैं। पूर्व गोंडल से मुद्रित कृष्णचरित सम्प्रति उपलब्ध भी नहीं है । पाठवें परिशिष्ट में दूसरे भाग के पृष्ठ ३६२ पर निर्दिष्ट निरुक्त १।१७ के पदप्रकृतिः संहिता, पदप्रकृतीनि सर्वचरणानां पार्षदानि वचन की विशेष विवेचना की है। नवें परिशिष्ट में जार्ज कार्डोना ने अपने 'पाणिनि : ए सर्वे आफ रिसर्च' नामक ग्रन्थ में मेरे 'व्या० शा० का इतिहास के सम्बन्ध में जो कुछ मन्तव्य प्रकट किया है, उसे यथावत् हिन्दी में अनदित करके छापा है । साथ में अपनी कुछ टिप्पणियां भी दी हैं। ग्यारहवें परिशिष्ट में 'सं० व्या० शा० का इतिहास' ग्रन्थ के लेखन, परिष्कार एवं परिवर्धन निमित जिन विद्वज्जनों ने पत्रों द्वारा समय-समय पर
SR No.002284
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy