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________________ ३/२० ग्यारहवां परिशिष्ट १५३ (२०) प्रोम नई देहली १३-१-४६ प्रियवर पण्डित जी, नमस्ते । अापका १० का पोस्टकार्ड मिल गया था। धन्यवाद । कागज को बहुत देर नहीं लगेगी । यहां भी कागज आया है। परन्तु छपाई अजमेर में ही करानी है। व्याकरण इतिहास के ' दोनों भाग शीघ्र छपेंगे । वैदिक वाङ्मय भी वहीं छपेगा। पूछे यदि बाबूजो प्रबन्ध कर सके, तो कागज ले कर भिजवा दूं। रुपया छपाई १० थोड़ा २ पहले भी दे सकेंगे। पं० जियालाल जी ने भी वचन दिया है। उन से अवश्य मिल लें । जो पत्र बाबू हरबिलास जी को लिखा था, उस संबंध में कोई उत्तर नहीं आया। आप वाली योजना पर मत उसी पत्र में था । ... बौधायन धर्मसूत्र-पृ० १७१ पर आश्वलायनं शौनकं तर्पयामि। १५ २।५।१४।। अतः . शौनक-आश्वलायन पाणिनि बौधायन ऐसा क्रम जुड़ेगा। पाणिनि [को] शौनक के प्रथम दीर्घसत्र से ५० २० वर्ष पश्चात् रखें । पूरा काल मेरे इतिहास की सहायता से गिन लें।। ___ सरस्वती वाला लेख एक दो दिन में भेजूगा। उस में चमत्कार नहीं है। प्रत्येक ग्रन्थ का काल निर्धारण करना है। ऐसी ऊहा करें। अन्य प्राचीन ग्रन्थों से उस के प्रमाण खोजने हैं । कलकत्ता में आप के मुद्रित पृष्ठ विद्वानों को सर्वत्र दिखा दिए हैं। २५ बहुत आवश्यकता है । शीघ्र छा। क्षितीशचन्द्र चैटजि एम० ए० ने जाम्बवती विजय पर एक लम्बा लेख लिखा था । वह मैं ले आया हूं। उसके पास भागवृत्ति के लगभग
SR No.002284
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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