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________________ ग्यारहवां परिशिष्ट (6) ओम् १४३ श्रार्यसमाज लछमनसर अमृतसर २२-३-४८ प्रियवर पण्डित जी, नमस्ते ध्वन्यालोक [ पृष्ठ ] ३८६ तीसरा उद्योत की अभिनवगुप्तकृत लोचन टीका में लिखा है तथा च भागुरिरपि - किं रसानामपि स्थायिसंचारितास्तीत्याक्षिप्य १० अभ्युपगमेनैवोत्तरमवोचद् वाढमस्तीति । यह प्रमाण अलंकार शास्त्र से है वहां लिखें । 'कश्मीर के छपे काठकगृह्य प्रांगल भाषा भूमिका पृष्ठ ६ पर लौगाक्षिश्च तथा काण्वस्तथा भागुरिरेव च । एते मे यह पाठ अगस्त्य के श्लोक तर्पण में। भागुरि याजुष प्राचार्यं । १५ यह वचन लिख लें । "दुर्ग निरुक्त १।१३ के अन्त भाष्य में - शाकटायनोऽतिपाण्डित्या - भिमानात् अमृतसर प्रापका प्रबन्ध हो सकता है । सोच कर लिखें । रहना यहीं समाज में होगा । शीघ्र उत्तर देवें । भ० दत्त आपके ग्रन्थ के पृष्ठ ४१ * पर तै० सं० के प्रमाण में 'वायु' वाला पाठ लिखना चाहिये । क्या वही वायु- वायुपुराण में स्मृत है । बहुत सूक्ष्मेक्षिका से देखें | शब्दशास्त्र में वह इन्द्र का सहकारी भ० दत्त १. ये अगली पक्तियां पत्र के ऊपर रिक्त स्थान में लिखी हैं। हमने यहां जोड़ी हैं । २. यह पवित भी पत्र के हाशिये पर लिखी है । ३. यह पृष्ठ संख्या लाहौर में सन् १९४७ में छप रहे 'संस्कृत व्याकरण शास्त्र का इतिहास' के पहले भाग की है । यह पा अश वहीं नष्ट हो गया । २५
SR No.002284
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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