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________________ गणपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता १६५ ऐसा ही उल्लेख हरदत्त ने भी इसी सूत्र पर किया है। २-न्यासकार स्थूलादि (५४५३) गण में पठित स्थूलाणुमाषेषु की तीन प्रकार की, तथा पाद्यकालावदात्ताः सुरायाम सूत्र की दो प्रकार की प्राचीन व्याख्याएं उधत करता है। ये विभिन्न व्याख्याएं सम्भवतः पाणिनि द्वारा ही अनेक प्रवचनकाल में की गई होंगी। ५ अन्यथा सभी व्याख्यानों का प्रामाण्य नहीं माना जा सकता। ३-- वर्धमान सूरि गणरत्नमहोदधि में क्रोड्यान्तर्गत चैतयत पद पर लिखता है'पाणिनिस्तु चित संवेदने इत्यस्य चैतयत इत्याह' । पृष्ठ ३७ । पाणिनि ने चैतस्त पद की वर्धमाननिदर्शित व्युत्पत्ति गणपाठ की १० वत्ति में प्रदर्शित की होगी। काशिका में 'चैतयत' के स्थान में चैटयत पाठ मिलता है, वह चिन्त्य है। इन प्रमाणों में स्पष्ट है कि पाणिनि ने अपने गणपाठ के प्रवचन के साथ-साथ उसकी किसी वृत्ति का भी प्रवचन किया था, और वह गणपाठ और वत्ति का प्रवचन अनेकविध था। उसी वैविध्य के १५ कारण पाणिनीय सम्प्रदाय में भी गणपाठ के व्याख्याकारों में अनेक मत प्रचलित हो गए। २-नामपारायणकार (वि० सं० ७०० से पूर्व) काशिकाकार ने ग्रन्थ के प्रारम्भ में लिखा है 'वृत्तौ भाष्ये तथा धातुनामपारायणादिषु ।, - यहां पारायण शब्द दोनों के साथ संबद्ध होकर नामपारायण और धातुपारायण नाम के ग्रन्थों का संकेत करता है। धातुपारायण नाम के धातुपाठ के व्याख्यान ग्रन्थ कई एक प्रसिद्ध हैं। उनका निर्देश धातुपाठ के प्रकरण में यथास्थान कर दिया है। धातुपारायण के सादृश्य से नामपारायण गणशब्दों का व्याख्यान ग्रन्थ २५ होना चाहिए। हरदत्त ने उक्त श्लोक की व्याख्या में यही तात्पर्य प्रकट किया है । यथा 'यत्र धातुप्रक्रिया तद् धातुपारायणम्, यत्र गणशब्दानां निर्वचनं तन्नामपारायणम् ।' पदमञ्जरी (प्रारम्भ में) भाग १. पृष्ठ ४ ।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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