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________________ १६० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास शब्द भी पढ़े गये थे और लघुपाठ में गणसूत्र ही पठित था, उदाहरणभूत शब्दों का निर्देश नहीं था। नागेश की भूल-नागेशभट्ट ने कैयट के इस स्थल की व्याख्या में लिखा है प्राचार्याणां मतभेदेन क्रोष्टुशब्दपाठापाठावुक्तो। अर्थात् -आचार्यों के मतभेद से गौरादि गण में क्रोष्टु शब्द का पाठ अथवा पाठाभाव कहा है। इससे ऐसा ध्वनित होता है कि नागेश पाणिनि से भिन्न प्राचार्यों द्वारा पठित गणपाठ में क्रोष्ट शब्द के पाठ अथवा पाठाभाव को १० मानता है। - उभयपाठों का पाणिनीयत्व-गणपाठ के वृद्ध और लघु दोनों पाठ पाणिनि-प्रोक्त हैं । यह अष्टाध्यायी और धातुपाठ के वृद्ध और लघुपाठ की तुलना से स्पष्ट है। कई विद्वानों का कहना है कि गौरादि गण में पिप्पल्यादयश्च " गणसूत्र सर्वथा प्रक्षिप्त है। क्योंकि पाणिनि ने कहीं पर भी पिप्पल्यादि शब्द नहीं पढ़े, जिनके आधार पर गणसूत्र की रचना हो सके ।' वस्तुतः यह कथन चिन्त्य है । पाणिनीय गणपाठ में अन्यत्र भी अवान्तर गणसूचक गणसूत्र विद्यमान हैं, यथा गहादि (४।२।१३८) गण में वेणकादिभ्यश्छण् गणसूत्र । ऐसे सभी गण अथवा गणसूत्र उन प्राचीन गणपाठों से आए हुए हैं, जिनमें ये गण स्वतन्त्र रूप से अन्यत्र पढे गये थे । गहादि गण में पठित वेणुकादिभ्यश्छण् गणसूत्र इस बात की स्पष्ट घोषणा कर रहा है कि इस गणसूत्र को पाणिनि ने किसो पर्वाचार्य के गणपाठ से लिया है, क्योंकि गहादियों से 'छ' प्रत्यय तो प्राप्त ही है, केवल उसके णित्व का विधान ही इष्ट है। यदि इस ५ सूत्र को पाणिनि पूर्वसूत्र के रूप में ही स्वीकार न करते तो उन्हें वेणुकादिभ्यो णित् आनुपूर्वी रखनी चाहिए थी। १. द्रष्टव्य-प्राध्यापक कपिल देव साहित्याचार्य एम. ए. पीएच. डी. का संस्कृत व्याकरण में गणपाठ की परम्परा और प्राचार्य पाणिनि' नामक निवन्ध, अ० २, पृष्ठ ३४ ॥
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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