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________________ २/१७ धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता (३) १२६ विक्रम की नवम शती है। इसलिए श्रुतपाल का काल विक्रम की नवम शतो अथवा उससे कुछ पूर्व है, इतना ही साधारणतया कहा जा सकता है। ३–आर्य श्रुतकीर्ति आर्य श्रुतकीति ने जैनेन्द्र व्याकरण पर पञ्चवस्तु नामक एक ५ प्रक्रियाग्रन्थ लिखा है । इस प्रक्रियाग्रन्थ के अन्तर्गत जैनेन्द्र धातुपाठ का भी व्याख्यान है। आर्य श्रतकीर्ति का काल विक्रम की १२ वीं शती का प्रथम चरण है।' ४-वंशीधर वंशीधर नामक आधुनिक वैयाकरण ने भी जैनेन्द्र-प्रक्रिया ग्रन्थ १० लिखा है । इसका अभी पूर्वार्ध हो प्रकाशित हुआ है। उत्तरार्ध में धातुपाठ की भी व्याख्या होगी। शब्दार्णव-संबद्ध जैनेन्द्र धातुपाठ जैनेन्द्र धातुपाठ के गुणनन्दी-परिष्कृत संस्करण पर किसी वैयाकरण ने कोई वृत्तिग्रन्थ लिखा अथवा नहीं, यह अज्ञात है। हां १५ शब्दार्णव पर किसी अज्ञातनामा ग्रन्थकार ने एक प्रक्रियाग्रन्थ लिखा है। उसके अन्तर्गत इस धातुपाठ की व्याख्या भी है। -::११. वामन (वि० सं० ४०० अथवा ६०० पूर्व) वामनविरचित विश्रान्त-विद्याधर नामक व्याकरण और उसकी स्वोपज्ञ बृहत् व लघु वृत्तियों का निर्देश हम इसी ग्रन्थ के प्रथम भाग २० में विश्रान्त-विद्याधर व्याकरण के प्रकरण में कर चुके हैं। वहीं पर तार्किकशिरोमणि मल्लवादी कृत न्यास ग्रन्थ का उल्लेख कर चके हैं। १. द्र०-सं० व्या० शास्त्र का इतिहास, भाग १, दुर्गवृत्ति की दुर्गसिंह कृत टीका के प्रकरण में । २. द्र०-सं० व्या० शास्त्र का इतिहास, भाग १, जैनेन्द्र व्याकरण । प्रकरण। ३. द्र० सं० व्या० शास्त्र का इतिहास, भाग १, शब्दार्णव व्याकरण प्रकरण।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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