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________________ ८८ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास २–कविकल्पद्रुम की टीका में दुर्गादास लिखता हैस्तम्भ इह क्रियानिरोध इति भीमसेनः । पृष्ठ १७१ । स्तुन्भु स्तम्भे सौत्र धातु है । इसका धातुपाठ में उपदेश नहीं है। धातुवृत्तिकार प्रसंगवश सौत्र धातुओं का व्याख्यान भी अपनी वृत्तियों ५ में करते हैं। दुर्गादास का कथन है कि स्तन्भ स्तम्भे धातु का जो स्तम्भ अर्थ है, उसका अभिप्राय यहां क्रियानिरोध है, ऐसा भीमसेन का कथन है। भीमसेन स्तम्भ का क्रियानिरोध अर्थ धातुवृत्ति में हो लिख सकता है, धात्वर्थनिर्देश में इसका कोई प्रसंग हो नहीं, क्योंकि धात्वर्थनिर्देश तो 'स्तम्भ' हो है । इससे स्पष्ट है कि भीमसेन ने कोई १० धातूवत्ति ग्रन्थ लिखा था, उसी में स्तम्भ का क्रियानिरोध अर्थ दर्शाया होगा। ३-'दैव' ग्रन्थ का व्याख्याता कृष्ण लीलाशुकमुनि लिखता है क्षप प्रेरणे भीमसेनेन कथादिष्वपठितोऽप्ययं बहुलमेतन्निदर्शनम्' इत्युदाहरणत्वेन धातुवृत्तौ पठ्यते । पृष्ठ ८८। १५ अर्थात्-कथादि में अपठित 'क्षप प्रेरणे' धातु को भीमसेन ने 'बहुलमेतन्निदर्शनम्' के उदाहरण रूप से धातुवृत्ति में पढ़ा है। ४- यही पाठ स्वल्पभेद से देवराज यज्वा के निघण्टु-व्याख्यान (पृष्ठ ४३, १०६) में दो बार उपलब्ध होता है। उपर्युक्त पाठ में 'धातुवत्तौ पठ्यते' का कर्ता भीमसेन के अति२० रिक्त दूसरा नहीं हो सकता, क्योंकि दूसरे कर्ता का निर्देश वाक्य में नहीं है। इससे स्पष्ट है कि भीमसेन ने कोई धातुवृत्ति नामक धातून व्याख्यान ग्रन्थ लिखा था, उसी में उसने बहुलमेत निदर्शनम् धातुसूत्र की व्याख्या में अपठित क्षप प्रेरणे धातु का निर्देश किया था और उसी में स्तम्भु स्तम्भे धातु के स्तम्भ का अर्थ क्रियानिरोध लिखा २५ था। भीमसेनीय धातुपाठ का भोट भाषा में अनुवाद पञ्चमभोट गुरु सुमतिसागर के आदेश से रत्नधर्मकीति ने किया था। इस भोटभाषानूवाद से भीमसेनीय धातुपाठ के उद्धार का गुरुतरकार्य शान्ति निकेतन के प्राध्यापक डा० विश्वनाथ भट्टाचार्य कर रहे हैं। ऐसा ३० उन्होंने २१-६-१९७६ के पत्र द्वारा मुझे सूचित किया था।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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