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________________ ५१८ संस्कृत व्याकरण का इतिहास भागवृत्ति जैसा प्रामाणिक ग्रन्थ और उसकी टीका दोनों ही इस समय अप्राप्य हैं । यह पाणिनीय व्याकरण के विशेष अनुशीलन के लिये दुःख का विषय है। ५ १४. भीश्वर (सं० ७८० वि० से पूर्ववर्ती) . वर्धमान सूरि अपने 'गणरत्नमहोदधि' में लिखता है'भर्बीश्वरेणापि वारणार्थानामित्यत्र पुल्लिङ्ग एव प्रयुक्तः।" अर्थात्-भीश्वर ने अष्टाध्यायी के 'वारणार्थानामोप्सितः' सूत्र की व्याख्या में 'प्रेमन्' शब्द का पुल्लिङ्ग में प्रयोग किया है। इस उद्धरण से विदित होता है कि भर्तीश्वर ने अष्टाध्यायी को कोई व्याख्या लिखी थी। भीश्वर का काल भट्ट कुमारिल प्रणीत 'मीमांसाश्लोकवार्तिक' पर भट्ट उम्बेक की व्याख्या प्रकाशित हुई है । उस में उम्बेक लिखता है_ 'तथा चाहुर्भ/श्वरादयः किं हि नित्यं प्रमाणं दृष्टम्, प्रत्यक्षादि वा यदनित्यं तस्य प्रामाण्ये कस्य विप्रतिपत्तिः, इति । ____ इस उद्धरण से ज्ञात होता है कि भ?श्वर भट्ट उम्बेक से पूर्ववर्ती है, और वह बौद्धमतानुयायी है। उम्बेक और भवभूति का ऐक्य २. भवभूतिप्रणीत 'मालतीमाधव' के एक हस्तलेख के अन्त में ग्रन्य कर्ता का नाम 'उम्बेक लिखा है, और उसे भट्ट कुमारिल का शिष्य कहा है। भवभूति 'उत्तरामचरित' और 'मालतीमाधव' को प्रस्तावना में अपने लिये पदवाक्यप्रमाणज्ञ' पद का व्यवहार करता है । पद. वाक्यप्रमाणज्ञ पद का अर्थ पदव्याकरण, वाक्य =मोमांसा, और प्रमाण=न्यायशास्त्र का ज्ञाता है। इस विशेषण से भवभूति का मीमांसकत्व व्यक्त है। दोनों के ऐक्य का उपोद्बलक एक प्रमाण और १. गणरत्नमहोदधि, पृष्ठ २१६ । २. १.४१२७॥ ३. देखो-पृष्ठ ३८ । ४. संस्कृत साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, पृष्ठ ३८६ । २५
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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