SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 485
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास यत्र तु तयोरन्यतरदनवकाशं तत्रैव डिच्च पिन्नेत्यादिप्रवृत्तिरितिरत्नोक्तिं खण्डयतुमाह-सार्वेति ।' __छायाकार वैद्यनाथ के कथनानुसार नागेश ने सार्वधातुकमाश्रित्य मादि पङिक्त शिवरामेन्द्र सरस्वती के भाष्यव्याख्यान के खण्डन के लिये लिखी है । छायाकार द्वारा उद्धृत पङिक्त सिद्धान्तरत्नप्रकाश में भाग १, पृष्ठ ३३० पं० ११-१३ पर स्वल्प पाठभेद से उपलब्ध होती है। २. इसी प्रकार वृद्धिरादैच् (१।१।१) सूत्र के षष्ठीनिदिष्टस्यादेशा उच्यन्ते भाष्य के प्रदीप की व्याख्या करते हए नागेश ने लिखा १. हैं-वस्तुतस्तु स्थानप्रसङ्ग एव..."वदन्ति ।" __इसकी व्याख्या में वैद्यनाथ पायगुण्ड ने सिद्धान्तरत्नप्रकाश वी नवाह्निक, भाग १. पृष्ठ २३० पं० २८ 'स्थानशब्दस्यानुपात्तत्वेन से लेकर पृष्ठ २३१, पं० ७ 'भवतस्तात्पर्यात्' पर्यन्त भाग को स्वशब्दों में उद्धृत करके लिखा है-इति रत्नोक्तमपास्तम् । ___ इस प्रकार अनेक प्रसंग उद्धृत किये जा सकते हैं। परन्तु उक्त दो उद्धरणों से ही यह स्पष्ट होता है कि शिवरामेन्द्र सरस्वती नागेश भट्ट से कुछ पौर्वकालिक है अथवा समकालिक होने पर भी शिवरामेन्द्र सरस्वती ने स्वभाष्य-व्याख्या नागेशकृत उद्योत से पूर्व लिखी थी। यह स्पष्ट है । अतः शिवरामेन्द्र सरस्वती का काल सामान्यरूप से २० सं० १६७५-१७५० के मध्य माना जा सकता है। आफेक्ट ने अपने हस्तलेखों के बृहत्सूचोपत्र में शिवरामेन्द्र सरस्वती कृत सिद्धान्तकौमुदी की रत्नाकर टोका का उल्लेख किया है। जम्मू के रघुनाथ मन्दिर के पुस्तकालय में शिवरामेन्द्र यति विरचित 'णेरणा १. द्र०. नवाह्निक, निर्णयसागर संस्क० २, पृष्ठ १६५, कालम २ टि. १६ 'महाभाष्यप्रदीपव्याख्यानानि' के सम्पादक ने उपोद्घात, पृष्ठ XIX(१९) पर टि० संख्या ४ में इस पाठ का निर्देश निर्णयसागरीय संस्क० पृष्ठः २१८ लिखा है । यह पाठ पृष्ठ १९५ पर है। २. नवाह्निक महा० निर्णय० सं० २, पृष्ठ १४४, कालम २। । ३. नवाह्निक, निर्णय० सं० २, पृष्ठ १४४ कालम २, टि. १० । यह दिप्पणी पृष्ठ १४५ कालम १ पर समाप्त हुई है।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy