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________________ प्रकाशकीय . भगवान महावीर के २६०० वें जन्म-जयंती-वर्ष पर श्री जैन श्वे. नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ द्वारा जिनसूत्र' का प्रकाशन करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता है । जैन-धर्म एक मानवतावादी धर्म है, जिसकी सदैव अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त में आस्था रही है । भगवान महावीर जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर हैं। भगवान महावीर का जीवन दिव्य साधनामय और अतिशय महिमायुक्त रहा है, लेकिन उनके उपदेश और संदेश तो उससे भी अधिक जीवन्त और सकल विश्व के लिए कल्याणकारी रहे। भगवान महावीर के संदेश उनके समय में जितने लाभप्रद सिद्ध हुए, आज के सन्दर्भो में उनकी उपयोगिता और अधिक है। यद्यपि भगवान महावीर के उपदेश आगमों में संकलित हैं, पर शास्त्रों की प्राचीन भाषा और उनका परिमाण अत्यधिक विस्तृत होने के कारण आम जनमानस की पहुँच के बाहर हैं । आज के सन्दर्भो में एक ऐसे सार-संकलन की आवश्यकता रही, जो भगवान महावीर की मूल जीवन-दृष्टि को उजागर कर सके, आम जनमानस के लिए जीवन जीने की सम्यक् शैली उपलब्ध करवा सके । प्रस्तुत पुस्तक 'जिनसूत्र' भगवान महावीर की वाणी का सुव्यवस्थित सार-संकलन है । यह आगमों का नवनीत है और जन-जन के लिए एक ज्ञानदायी वरदान। प्रसिद्ध चिन्तक एवं आगम-मर्मज्ञ पूज्य श्री चन्द्रप्रभ जी के प्रति हम अपना आभार समर्पित करते हैं जिन्होंने 'जिनसूत्र' जैसा एक सुन्दर, सरल और सर्वग्राह्य संकलन तैयार किया। इसका नित्य पठन और मनन हमारे लिए धर्म, अध्यात्म और मुक्ति के द्वार खोलेगा।
SR No.002278
Book TitleJinsutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwe Nakoda Parshwanath Tirth
Publication Year2001
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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