SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीर्थंकर पार्श्वनाथ कई छोटे-बड़े आयोजन हुए। उपाध्यायश्री के साप्ताहिक प्रवचनों में श्रद्धालु बड़ी तादाद में आते रहे। उपाध्यायश्री के संत शिष्य वैराग्य सागर महाराज का स्वास्थ्य प्रतिकूल हो जाने के बावजूद भी उपाध्यायश्री का उद्बोधन निरंतर जारी रहा। एक सितम्बर को अमर उजाला ने "पेट शुद्धि के लिए उपवास जरूरी" शीर्षक से लिखा 'महाराज जी ने कहा कि संसारी प्रणाली अहर्निश पाँचों इन्द्रियों के विषयों में आसक्त है इनकी पूर्ति के लिए वह न दिन देखता हैं और न रात, न भक्ष्य देखता है और न ही अभक्ष्य"। .. इससे पूर्व उपाध्यायश्री के सानिध्य में 24 अगस्त को 'मानवता की धुरी' पुस्तक का विमोचन हुआ। इस संबंध में जैन गजट ने लिखा 'मानवता की धुरी पुस्तक का विमोचन रेवाड़ी से आए श्री मुनि संघ अध्यक्ष तथा संगीतकार रवीन्द्र जैन के छोटे भाई मणींद्र जैन ने किया। आगम प्रकाशन रेवाड़ी ने इस पुस्तक को प्रकाशित किया है। नीरज जी सतना ने इस पुस्तक को प्रस्तुत किया है। नीरज जी सतना ने इस पुस्तक में प्रत्येक प्रसंग को बहुत गहराई से समझाया। इसी अखबार ने लिखा 'चौरासी. मथुरा में आकर यात्री एक पंथ दो काज वाली सूक्ति को चरितार्थ कर एक ओर श्री जंबू स्वामी की निर्वाण स्थली के दर्शन कर रहे हैं तो दूसरी ओर उपाध्यायश्री ज्ञानसागर जी जैसे संतों के दर्शन कर अपने नयनों को सफल कर रहे हैं। ग्यारह व बारह सितम्बर को नवभारत टाइम्स ने उपाध्यायश्री के चातुर्मास से संबंधित खबरें प्रकाशित की। 16 सितम्बर को दैनिक जागरण ने उपाध्यायश्री के सानिध्य में होने वाली जिला स्तरीय छात्र शाकाहार निबन्ध एवं चित्र प्रतियोगिता का विस्तृत ब्यौरा प्रकाशित किया। पन्द्रह सितम्बर को "सुख के बीज बोने पर आनंद की प्राप्ति संभव" शीर्षक से "आज" ने लिखा 'उपाध्यायश्री ने कहा कि सुख के फल प्राप्त करने के लिए सुख के बीज बोने पड़ेंगे। तभी सुख की प्राप्ति . संभव है।
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy