SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 598
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५६१) चतुर्थादि गुण स्थान वर्तिनोऽकाम निर्जराः । जीवा बध्नन्ति देवायुस्तथा बाल तपस्विनः ॥२६२॥ चौथे या इससे ऊपर गुणस्थान में रहने वाला निष्काम निर्जरा वाला जीव तथा जो बालतपस्वी हो वह देव का आयु बन्धन करता है । (२६२) गुणाप्रेक्षी त्यक्तमदोऽध्ययनाध्यापनोद्यतः । . उच्चं गोत्रमर्हदादि भक्तो नीचमतोऽन्यथा ॥२६३॥ गुणों का पक्ष करने वाला, अहंकार से रहित, सतत् अभ्यासी और अध्यापक अर्हद् भक्त उच्च गोत्र का बन्धन करता है और इससे विपरीत आचरण करने वाला नीच गोत्र का बन्धन करता है । (२६३) अगौरवश्च सरलंः शुभं नामान्यथाशुभम् । बध्नाति हिंसको विनमर्हत्पूजादि विजकृत् ॥२६४॥ अहंकार रहित सरल आत्मा शुभ नामकर्म उपार्जन करता है, जो इससे विपरीत हो वह अशुभ नामकर्म बन्धन करता है और प्रभु की पूजा आदि में विघ्न करने वाला अन्तराय कर्म बन्धन करता है । (२६४) स्थितिरुत्कर्षतो ज्ञानदर्शनावरणीययोः । ... वेदनीयस्य च त्रिंशम्भोधि कोटि कोटयः ॥२६५॥ ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और वेदनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति तीस कोटा कोटी सागरोपम की होती है । (२६५) . मोहनीयस्य चाब्धीनां सप्ततिः कोटि कोटयः । _आयुषः स्थितिरुत्कर्षात्रयस्त्रिंशत् पयोधयः ॥२६६॥ .... मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोटा कोटी सागरोपम की है और आयुकर्म की उत्कृष्ट स्थिति तैंतीस सागरोपम की होती है । (२६६) अबाधा काल रहिता प्रोक्तैषायुर्गुरु स्थितिः ।। तद्युक्तेयं पूर्व कोटि तात्तीयीकलवाधिका ॥२६७॥ .. आयुष्य कर्म की जो उत्कृष्ट स्थिति कही है वह अबाधा काल रहित समझना । अबाधा काल इकट्ठा गिनते हैं तो वह उससे एक तृतीयांश पूर्वकोटि अधिक होती है । (२६७) गोत्र नाम्नः साम्बुधानां विंशतिः कोटि कोटयः। स्थितिये॒ष्ठान्तरायस्य स्यात् ज्ञानावरणीयवत् ॥२६८॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy