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________________ (५४८) अंगुलियां आदि उपांग कहलाते हैं । ज्ञानी पुरुषों ने नाखून, अंगुलियों के पर्व आदि को भी उपांग गिना है । (१७६-१८०) औदारिकाद्यंग सक्त पुद्गलानां परस्परम् । निबद्ध बध्यमानानां सम्बन्ध धटकं हि यत् ॥१८१॥ तद् बन्धनं स्व स्व देह तुल्याख्यं पंचधोदितम् । दादि सन्धिघटक जत्वादि सद्दशं ह्यदः ॥१८२॥ (युग्मं।) बन्धन के पांच भेद हैं- औदारिक आदि अंगों के साथ में आसक्ति, बन्धन हुए और बन्धन होते पुद्गलों का परस्पर सम्बन्ध घटाने वाला, वह बन्धन कहलाता है । इसके पांच प्रकार हैं और काष्ठ आदि की सन्धि मिला देने वाली लाख आदि के समान है । (१८१-१८२) औदारिकाद्यंगयोग्यान् संघातयति पुद्गलान् । : यत्तत् संघातनं पंचविधं बन्धनवत् भवेत् ॥१८३॥ संघातन पांच प्रकार के होते हैं । जो औदारिक आदि अंगों के योग्य होता है उस पुद्गल का जो संघातन करने वाला है वह संघातन कहलाता है। वह बंधन के समान होता है । (१८३) यद्वा पंचदश विधमेवं भवति बन्धनम् । . औदारिकौदारिकाख्यं बन्धनं प्रथमं भवेत् ॥१८४॥ औदारिकतैजसाख्यं तथौदारिककार्मणम् । स्याद्वैक्रिय वैक्रियाख्यं तथा वैक्रिय तैजसम् ॥१८॥ वैक्रियकार्मणाख्यं चाहारकाहारकं तथा । आहारकतैजसं च तथाहारक कार्मणम् ॥१८६॥ औदारिकतैजसकार्मणं बन्धनमीरितम् । वैकि यतैजसकार्मण बन्धनमथावरम् ॥१८७॥ आहारक तैजसकार्मण बन्धनमेव च । तैजसतैजस बन्धन च तैजसकामणम् ॥१८८॥ अथवा बन्धन के इस तरह पंद्रह भेद भी होते हैं- १. औदारिक औदारिक, २. औदारिक तैजस, ३. औदारिक कार्मण, ४. वैक्रिय वैक्रिय, ५. वैक्रिय तैजस, ६.वैक्रिय कार्मण,७. आहारक आहारक,८. आहारक तैजस, ६. आहारक कार्मण,
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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