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________________ (४६२) तालु, जीभ, होठ और नखून लाल होते हैं । ये मस्तक पर मुकुट और विविध आभूषण धारण करते हैं। इनका स्वभाव गम्भीर होता है और इनका दर्शन मनोहर होता है। (३५-३८) करालरक्तलम्बौष्ठास्तपनीय विभूषणाः । राक्षसाः सप्तधा प्रोक्तास्तेऽमी भीषण दर्शनाः ॥३६॥ विना भीम महाभीमास्तथा राक्षस राक्षसाः । परे विनायका ब्रह्मराक्षसा जल राक्षसाः ॥४०॥ ... राक्षस सात प्रकार के होते हैं- विघ्न भीम, महाभीम, राक्षस, अराक्षस विनायक, ब्रह्मराक्षस और जल राक्षस। इनके विकराल लाल लटकते होठ होते है और ये सभी सुवर्ण के आभूषण पहनते हैं। (३६-४०) मुखेष्वधिक रूपाठ्याः किन्नरा दीपमौलयः । ... दशधा किन्नरा रूपशालिनो हृदयंगमाः ॥४१॥ रतिप्रिया रतिश्रेष्ठाः किं पुरुषा मनोरमाः । अनिन्दिताः किं पुरुषोत्तमाश्च किन्नरोत्तमाः ॥४२॥ किन्नर के दस भेद होते हैं- किन्नर, रूपशाली, हृदयंगम, रतिप्रिय, रतिश्रेष्ठ, किंपुरुष, मनोरथ अनिन्दित, किंपुरुषोत्तम और किन्नरोत्तम। इनके मुख आदि अवयव अधिक सौन्दर्यवान होते हैं और ये सब तेज चमकता मुकट धारण करते हैं। (४१-४२) मुखो रूवाहू द्यद्रुपाश्चित्रस्रगनुलेपनाः । दस किं पुरुषास्ते सत्पुरुषाः पुरुषोत्तमाः ॥४३॥ यशस्वन्तो महादेवा मरून्मेरू प्रभा इति । महातिपुरुषाः किं च पुरुषाः पुरुषर्षभाः ॥४४॥ किंपुरुष के भी दस भेद होते हैं- सत्पुरुष, पुरुषोत्तम, यशस्वान, महादेव, मरुत, मेरुप्रभ, महापुरुष, अति पुरुष और पुरुष-ऋषभ। ये रूपवान होते हैं, इनके हाथ और मुख मनोहर होते हैं, ये विचित्र प्रकार की माला धारण करते हैं और अनेक प्रकार का विलेपन करते हैं। (४३-४४) महोरगा दशविधा भुजगा भोगशालिनः । महाकाया, अतिकाया भास्वन्तः स्कन्ध शालिनः ॥४५॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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