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________________ (४४२) छुच्छंदरी मूषकाच हालिनीजाहकादयः । एवं स्थलचरा उक्ता उच्यन्ते खचरा अथ ॥६॥ अब भुजपरिसर्प अथति भुजा के बल पर चलने वाले भी अनेक प्रकार के होते हैं । नेवला, सरड़ा, गोधा, ब्राह्मणी, छिपकली, छंछुदर, चूहा, हालिनी, जहक इत्यादि इस तरह स्थलचर होते हैं । अब खेचर के विषय में कहते हैं। (६७-६८) ते चतुर्था लोम चर्म समुदगविततच्छदाः ।। तत्र हंसा कलहंसाः कपोत केकि वायसाः ॥६६u... खेचर चार प्रकार कहे हैं - १. लोमपक्षी, २. चर्मपक्षी, ३. संमुद्ग पक्षी और ४. विततपक्षी। उसमें प्रथम भेद इस तरह हैं- हंसकल, हंस, कबूतर, मोर, कौआ ॥६६॥ ढंकाः कंकाश्चक्रवाकाचकोर क्रौंच सारसाः। । कपिंजलाः कुर्कटाश्च शुकतित्तिरलावका ॥१०॥ हारीताः कोकिलाश्चाषाः वक चातक खंजनाः । शकुनिचट कागृथाः सुग्रहश्येन सारिका ॥१०१॥ शतपत्र भरद्वाजाः कुम्भकाराश्च टिट्टि भाः । दुर्ग कौशिकदात्यूह प्रमुखा लोम पक्षिणा ॥१०२॥ कलापकम्। ढंक, कंक, चक्रवाक, चकोर, क्रौंच, सारस, कपिंजल, कुकड़ा, तोता, तीतर, लावरी- लवा, हास्ति- कोयल, चाष- बगुला, चातक, खंजन, समद्री चील, गौरेया, गिद्ध, बया, श्वेत सारिका,शतपत्र, चडोल,कुंभकार, टिड्डियां, उल्लूऔर दात्यूह इत्यादि लोम पक्षी होते हैं। (१०० से १०२) । वल्गुली चर्म चटिका आटि भारुंडपक्षिणः । समुद्र वायसा जीवंजीवाद्याश्चर्मपक्षिणा ॥१०३॥ वागला, चिमगादड़, आटी, भारंड, समुद्र का कौवा और जीवंजीव इत्यादि चर्म पक्षी होते हैं। (१०३) समुद्गवत्संघटितौ येषामुड्डयनेऽपि हि । पक्षो स्यातां ते समुद्ग पक्षिणः परिकीर्तिता ॥१०४॥ अवस्थानेऽपि यत्पक्षौ ततो ते विततच्छदाः । इमौ स्तः पक्षिणां भेदौ द्वौ बाह्यद्वीपा वार्धिषु ॥१०॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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