SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 468
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४३१) एषां संहननं चैकं सेवार्तं परिकीर्तितम् । , इति संहननम् ॥१६॥ मान माया क्रोध लोभ कषाया एषु वर्णिताः ॥३७॥ इति कषायाः ॥२०॥ विकलेन्द्रिय जीवों को एक सेवात नामक संहनन ही होता है । यह संहनन द्वार है । (१६) इनको क्रोध, मान, माया और लोभ- ये चारों कषाय होते हैं। (३७) यह कषाय द्वारं है। (२०) . आहार प्रमुखाः संज्ञाश्च तस्त्र एषु दर्शिताः । ..... इति संज्ञाः ॥२१॥ द्वयक्षाणां स्पर्शनं जीढत्याख्यातमिन्द्रियं द्वयम् ॥३८॥ तत् त्र्यक्ष चतुरक्षाणां क्रमाद घ्राणेक्षणाधिकं । इति इन्द्रिय ॥२२॥ .. असत्त्वाद्वयक्त संज्ञानां ते निर्दिष्टा अंसज्ञिनः ॥३६॥ विकलेन्द्रिय जीवों को आहार आदि चार संज्ञा होती हैं। यह संज्ञा द्वार है । (२१) द्वीन्द्रिय जीव को स्पर्शेन्द्रिय और रसनेन्द्रिय होती हैं । त्रीन्द्रिय जीव को पूर्व की दो और तीसरी घ्राणेन्द्रिय, और चतुरिन्द्रय जीव को पूर्व की तीन और चौथी चक्षुरिन्द्रय. होती है। यह इन्द्रिय द्वार है । (२२) विकलेन्द्रिय जीव को प्रगट रूप में संज्ञा नहीं होती है इसलिए उन्हें असंज्ञी कहा है। (३८-३६) यद्वा....... न दीर्घ कालिकी नापि दृष्टि वादोपदेशिकी । स्याद्धेतु वादिकी ह्येषां न तया संज्ञिता पुनः ॥४०॥ इति संजिता ॥२३॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy