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________________ (२३६) काल में वृद्धि होती है तब द्रव्य, भाव और क्षेत्र में निश्चय वृद्धि होती है परन्तु क्षेत्र में वृद्धि होती है तब काल में वृद्धि होती है और उस समय में न भी हो क्योंकि क्षेत्र काल से सूक्ष्म है इसलिए ऐसा है । (६२१) द्रव्य पर्याययो वृद्धिरवश्यं क्षेत्रवृद्धितः । अत्राशेषो विशेषश्च ज्ञेयः आवश्यकादितः ॥६२२ ॥ क्षेत्र बढ़ा हो तो द्रव्य और पर्याय बढ़ता ही है, इसमें तो कुछ कहना ही नहीं है। इस सम्बन्ध में विशेष आवश्यक आदि सूत्रों में से जान लेना चाहिए। (६२२) अवध्यविषयत्वे नामूर्त्तयो क्षेत्र कालयोः 1 उक्त क्षेत्र काल वर्तिद्रव्ये कार्यात्र लक्षणा ॥ ६२३ ॥ इत्यवधिज्ञान विषयः । अरूपी क्षेत्र और काल अवधि ज्ञान का विषय न होने से, इनके विषय में कहे क्षेत्र - काल में रहे द्रव्य का समावेश कर लेना चाहिए । (६२३) इस प्रकार अवधि ज्ञान के विषय का स्वरूप कहा 1 स्कन्धाननन्तानृजुधीरूपयुक्तो हि पश्यति । नृक्षेत्रे संज्ञि पर्याप्तेर्मनस्त्वे नोररी कृतान् ॥ ६२४॥ अब मनः पर्यव ज्ञान के विषय में कहते हैं- ऋजुमति मनः पर्यव ज्ञानी मुनिराज उपयोग दें तो मनुष्य क्षेत्र में संज्ञी पर्याप्त जीवों ने मन रूप में स्वीकार किए अनन्त स्कंधों को देखता है। (६२४) मनोज्ञानस्य नितरां क्षयोपशम पाटवात् । विशेषयुक्तमेवासौ वेत्ति वस्तु घटादिकम् ॥६२५॥ . इतना ही नहीं परन्तु मनः पर्यवज्ञान के अति क्षयोपशम के कारण वह - जो घटादिक वस्तु देखता है वह इसको प्रत्येक विशेषतापूर्वक ही देखता है। (६२५) स्कन्धान् जानाति विपुलधीश्च तानेव साधिकान् । अपेक्ष्य द्रव्य पर्यायान् तथा स्पष्टतरानपि ॥ ६२६ ॥ और विपुलमति वाला मनः पर्यव ज्ञानी उन्हीं स्कंधों को द्रव्य पर्याय की . अपेक्षा से विशेष स्पष्ट रूप में और अधिक रूप में देखता है । (६२६) द्विधा मनः पर्यवस्य द्रव्यतो विषयोह्ययम् । विषयं क्षेत्रतोऽथास्य ब्रवीमि ऋजुधीरिह ॥६२७॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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