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________________ (xxv). अनुक्रमणिका सं० सं० सं० #1 - . .. 's क्र० विषय श्लोक | क्र० विषय • श्लोक सं० । पहला सर्ग १६ तीन प्रकार के संख्याता का १२३ १ मंगलाचरण स्वरूप २ ग्रन्थकर्ता की प्रस्तावना | २० नौ प्रकार के अनन्ता का १२४ ३ ग्रन्थारंभ-विविध प्रकार के स्वरूप परिणाम तीन प्रकार के असंख्याता का १२४ ४ उत्सेधांगुल स्वरूप ५ प्रमाणागुंल ३१ | २२ - आठवें अनन्त में २२ वस्तु २०६ ६ आत्मांगुल हैं उनके नाम ७ सूच्यागुल ४८ | दूसरा सर्ग (लोक स्वरुप) ८ प्रतरागुल | १ चार प्रकार के लोक का स्वरूप २ घनागुल २ . पहले प्रकार 'द्रव्य' परत्वे लोक .. १० अंक के स्थान-गुणाकार स्वरूप भागाकार .. ३ द्रव्य लोक छ: द्रव्य ११ ११ रज्जु का प्रमाण . ४ धर्मास्तिकाय--अधर्मास्तिकाय १५ १२ लोकोक्त मान का कोष्टक के विषय में १३ पल्योपम तथा सागरोपम . ६८ ५ आकाशस्तिकाय के विषय में २५ का माप विस्तार पूर्वक ज्ञान १४ उद्धार पल्योपम तथा सागरोपम ७१ ६ जीवास्तिकाय का स्वरूप ५३ (सूक्ष्मबादर) ७ जीव के सामान्य लक्षण १५ अर्द्धपल्योपम तथा सागरोपम ६८ ८ जीव के दो प्रकार:- सिद्ध ७४ . (सूक्ष्मबादर) और संसारी १६ उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी का १०४ ६ सिद्ध का स्वरूप प्रमाण १० एक समय में कितने सिद्ध हुये? ६५ १७ क्षेत्र पल्योपम तथा सागरोपम १०६ ११ सिद्ध की अवगाहना के ११२ (सूक्ष्मबादर) विषय में १८ संख्यात, असंख्यात और अनन्त१२२ १२ सिद्ध पद को कौन पाता है ? १३१ का स्वरूप M ____ ५३ ८३
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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