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________________ (७८) निमित्ताद्विष शस्त्रादेराहाराद् बहुतोऽल्पतः । स्निग्धतश्चास्निग्धतश्च विकृता दहिता वहात् ॥२॥ शूलादेर्वेदनायाश्च गर्ता प्रपतनादिकात् । पराघातात्स्पर्शतश्च, त्वग्विषादि समुद्र भवात् ॥८३॥ श्वासोच्छ्वासाच्च विकृतत्वे नात्यन्तं प्रसर्पतः । निरुद्धाद्वा म्रियेतांगी तस्मादेते उपक्रमाः ॥८४॥ त्रिविशेषकं॥ निमित्त से अर्थात् विषपान अथवा शस्त्रघात से मृत्यु होती है । आहार से अर्थात् अति अल्प, बहुत ज्यादा, बहुत भारी, अतीव लूखा, विकारी या अहितकारी भोजन करने से मृत्यु होती है। वेदना अर्थात् शूलि फांसी आदि से मृत्यु होती है । परघात अर्थात् किसी का कुछ अनिष्ट किया हो उसके आघात से मृत्यु होती है। स्पर्श से अर्थात् चमड़ी आदि किसी कठोर विष के स्पर्श होने से मृत्यु होती है । . श्वासोच्छास अर्थात् किसी व्याधि आदि के कारण जोर से श्वासोच्छास चलने लगे, इससे मृत्यु होती है अथवा श्वासोच्छास रोकने से भी मृत्यु होती है। यह सब उपक्रम आयुष्य जानना। (८२ से ८४) स्युः के षांचिद्यदप्येतेऽनुपक मायुपामपि । स्कंदकाचार्य शिष्याणामिव यंत्र निपीलना ॥८॥ तथापि कष्ट दास्तेषां न त्वायुः क्षयहेतवः । सोपक्रमायुष इव भासन्ते तेऽपि तैर्मृताः ॥८६॥ युग्मं। यह उपक्रम कितने ही अनुपक्रमी आयुष्य वालों को भी यद्यपि लगता है, जैसे स्कंधकाचार्य के शिष्यों को यंत्र में पिलना पड़ा था, फिर भी यह उपक्रम उनको केवल कष्ट देने वाला नहीं होता वरन् आयुष्य का अन्त लाने वाला होता है । इससे सोपक्रमी आयुष्य वालों के समान उनकी भी इस उपक्रम के कारण मृत्यु होती है - ऐसा भास होता है। (८५-८६) अथ प्रकृतम्- सोपक्रमायुषः केऽप्यनुपक्रमायुषः परे । इति स्युर्द्विविधा जीवास्तत्र सोपक्रमायुष ॥७॥ तृतीये नवमे सप्तविंशे भागे निजायुषः । । बधन्ति पर जन्मायुरन्त्ये वान्तर्मुहूर्त के ॥८॥ युग्मं। अब पुनः प्रस्तुत विषय कहते हैं - कई जीवों का आयुष्य सोपक्रमी होता है और कईयों का निरुपक्रमी होता है। उसमें सोपक्रमी आयुष्य वाला अपनी आयुष्य
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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