SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 378
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वसुनन्दि- श्रावकाचार ३३. स्त्री- लक्षण ३४. पुरुष - लक्षण ३५. अश्व - लक्षण ३६. गज- लक्षण ३७. गो-लक्षण ३८. कुक्कुट - लक्षण ३९. चक्र- लक्षण ४०. छत्र - लक्षण ४९. चर्म - लक्षण ४२. दण्ड- लक्षण ४३. असि - लक्षण ४४. मणि- लक्षण ४५. काकिणी- लक्षण ४६. वास्तुविद्या ४७. स्कन्धावार-मान ४८. नगर-निर्माण ४९. वास्तु-निवेशन ५०. व्यूह-रचना ५१. चार - -- - - - ―――― - - ---- आचार्य वसुनन्दि (२६२) पद्मिनी, शंखिनी, चित्रणी आदि महिलाओं के लक्षण जानने की कला उत्तम, मध्यम, अधम आदि पुरुषों के लक्षण अथवा शश पुरुष आदि के लक्षण जानने की कला अश्व के विविध जातियों के जानने की कला गज के शुभाशुभ लक्षण जानने की कला गाय, बैल के शुभाशुभ लक्षण जानने की कला मुर्गे के शुभाशुभ लक्षण जानने की कला चक्र-निर्माण-विधि की कला छत्र-निर्माण-विधि की कला ढाल आदि चर्म-निर्मित वस्तुओं के लक्षण जानने की कला दण्ड के शुभाशुभ लक्षण जानने की कला तलवार के उत्तम, मध्यम एवं जघन्य लक्षण जानने की कला रत्न- परीक्षा करने की कला चक्रवर्ती के एतत्संज्ञक़ रत्न के लक्षणों की पहिचान भवन-निर्माण एवं उनके शुभाशुभ लक्षण जानने की क़ला शत्रु - विजय के लिए अपनी सैन्य-शक्ति का परिणाम सामान्य अथवा युद्धोपयोगी विशेष नगर - रचने की कला का ज्ञान भवनों के उपयोग, विनियोग, निर्माण आदि की कला का • ज्ञान आवश्यकतानुसार विशिष्ट आकार में सैन्य दल स्थापित करने तथा शत्रु-व्यूह की प्रतिरोधक अपनी प्रतिव्यूह अर्थात् विशिष्ट व्यूह-रचना की कला का ज्ञान चन्द्र, सूर्य, राहु, केतु आदि ग्रहों की गति का ज्ञान अथवा राशि, गण, वर्ण एवं वर्ग का ज्ञान तथा प्रतिचार अर्थात् इष्टजन, अनिष्टनाशक, शान्तिकर्म का ज्ञान
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy