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________________ (वसुनन्दि-श्रावकाचार (२२८) आचार्य वसुनन्दि अर्थ — विद्वज्जन आहार, औषध और उपकरण तथा आवास के भी दान से वैयावृत्य को चार प्रकार का कहते हैं । आ० वसुनन्दि ने उपकरण के स्थान पर शास्त्र और आवास के स्थान पर अभयदान ग्रहण किया है, सो अधिक भेद नहीं है। आचार्य समन्तभद्र ने उपकरण शब्द में पिच्छी, कमण्डलु, शास्त्र आदि सभी प्रकार के उपकरण ग्रहण किये है तथा आ० वसुनन्दि के अनुसार अभयदान में जिन-जिन वस्तुओं से दूसरे जीवों का भय दूर किया जा सकता है, ऐसे आवासादि सभी वस्तुओं को ग्रहण किया जानना चाहिए। आचार्य कार्त्तिकेय लिखते हैं -- भोयणदाणं सोक्खं ओसह - दाणेण सत्थ- दाणं च । जीवाण अभय दाणं सुदुल्लहं सव्व दाणेसु । । ३६२ । । अर्थ - भोजन दान से सुख होता है । औषध दान के साथ शास्त्रदान और जीवों को अभयदान सब दानों में दुर्लभ है। जैनाचार पद्धति के श्रावकाचार कर्त्ता सभी आचार्यों ने दातव्य वस्तु के मुख्यतः चार ही भेद बतलाये है। कुछ आचार्यों ने इन्हीं के विस्तार स्वरूप अधिक भेद भी गिनाये हैं। रत्नमाला में दान के भेद देखिये आहारभयभैषज्यशास्त्रदानादि भेदतः । चतुर्धा दानमाम्नातं जिनदेवेन योगिना । । ३१ । । अर्थ – आहार - औषध - अभय और शास्त्रदान के भेद से दान चार प्रकार का है, ऐसा जिनेन्द्र देव ने कहा है । यह दान साधुओं को दिया जाता है। चतर्विध की आत्मसाधना निर्विघ्न हो, इस उद्देश्य से जिनेन्द्र देव ने चार प्रकार के दान की प्ररूपणा की है। आहार -दान- भूख सबसे बड़ा पाप है। वह शरीर की कान्ति को नष्ट कर देती है, बुद्धि को भ्रष्ट करती है, व्रत-संयम और तप में व्यवधान उत्पन्न करती है, आवश्यक कर्मों के परिपालन में बाधा उत्पन्न करती है, उस भूख के शमन करने के लिए प्रासुक, वातावरणानुकूल, साधना का वर्द्धन करने वाला आहार भक्तिपूर्वक मुनियों के लिए देना, आहारदान कहलाता है। अभयदान- • मुनियों के निवास हेतु प्रासुक वसतिका प्रदान करना, अभयदान है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चार पुरुषार्थ मनुष्य के लिए इष्ट हैं। वह बिना जीवन के सम्भव नहीं है। अतः दूसरों के जीवन की रक्षा करना, अभयदान हैं।
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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