SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . . . . . . . . . . . अरिहंत परम ध्येय परम आराध्य माने जाने वाले अरिहंत में और आराधक आत्मा में जैन धर्म के अनुसार द्रव्यदृष्टि से कोई भेद नहीं है। शुद्ध निश्चय नय की अपेक्षा से सभी जीव परस्पर समान हैं, उनमें कोई मौलिक भेद नहीं है। सबका मूल, गुण-स्वभाव एक-सा है। स्वभाव से ही प्रत्येक जीव अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत सुख और अनंतवीर्यादि शक्तियों से युक्त है। .. व्यवहार नय की अपेक्षा से जो बहुत बड़ा अन्तर है वह कर्मों से युक्त होने का है। कर्मों से मुक्त होकर आत्मा परमात्मा है। समस्त विकारभाव और समस्त विषमभाव रूप विभावपरिणति के कारण संसारी जीव कर्म का संयोग करता है। मोक्ष का स्वरूप जानने पर मोक्ष की इच्छा होती है। मोक्षाभिलाषी कर्ममुक्ति के उपायों को खोजने लगता है। वास्तविक पथं तो वही बता सकता है जिसे मार्ग मिल गया है। बिना आराध्य के निष्पत्तियाँ तो रहती हैं पर प्रक्रियाएँ खो जाती हैं। अरिहंत के बिना भी मंजिल तो रह जाती है, रास्ते खो जाते हैं। शिखर के देखते रहने से काम नहीं बन पाता। शिखर तक पहुँचने के लिए पगडंडी भी मिल जाय तो काफी है। वह शिखर स्वप्नवत् है जिसकी सीढ़ियाँ दिखाई न दें। वे मंजिलें व्यर्थ हैं जिनका मार्ग दिखाई न दे। वे सारी निष्पत्तियाँ बेबूझ हैं जिनकी प्रक्रिया न मिल पाती हो। . अरिहंत वे प्रक्रियाएँ हैं जो निष्पत्ति पाने तक. साथ हैं। मार्ग पर हाथ पकड़कर साथ देते हैं। सीढियों पर आरूढ आराधक की प्रत्येक धडकन में वे प्राणों का आयोजन करते हैं। सब कुछ होता है फिर भी वे कुछ नहीं करते हैं क्योंकि अरिहंत एक पद है, किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं है। इसी कारण यह संस्कृति की सीमा और बंधन से परे है। अरिहंत स्वयं एक अंतिम मंजिल है जिसके आगे कोई यात्रा नहीं। प्रश्न एक ही है, जैन संस्कृति का दावा है कि अरिहंत कुछ नहीं करते हैं फिर उनकी आराधना करने से क्या फायदा? इस प्रश्न पर सोचने पर प्रतिप्रश्न होगा किसको फायदा-आराध्य को या आराधक को? हमारी आराधना से आराध्य को न तो कोई फायदा है और न कोई नुकसान। यह हमारी एक बहुत बड़ी गलती होगी कि हम यदि ऐसा सोचें कि शायद इस आराधना से हम अरिहंत के लिए कुछ करते हैं। हम उनके लिए कुछ भी नहीं करते हैं और न ही कुछ कर भी सकेंगे। हमारे लिए उचित यही है कि हम उनके लिए कुछ न करें। हम जो कुछ भी करते हैं अरिहंत के लिए नहीं, अरिहंत की तरफ से हमारे लिए करते हैं। आराधना के जो परिणाम हैं, हम पर होने वाले हैं। आराधना का जो फल है, हमें मिलता है।
SR No.002263
Book TitleArihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1992
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy