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________________ . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . ४६ सम्बन्ध-दर्शन-अरिहंत और हम भी जीभ की विद्युत ऋणात्मक है और तालु की विद्युत धनात्मक है। दोनों दाँतों को सटाये बिना सिर्फ जीभ को तालु से लगाकर ध्यान करने से अपूर्व आनन्द का अनुभव होता है। __मनुष्य के शरीर में दाहिने हिस्से में ऋण विद्युत होती है और बाँये हिस्से में धन विद्युत होती है। पुरुष के मस्तिष्क का दाहिना भाग अधिक सक्रिय होता है और स्त्रियों के मस्तिष्क के दोनों भाग बराबर संतुलनमय होते हैं। यही कारण है कि पुरुष किसी भी कार्य को पूरा करने के लिये उतावला होता है। बाँया भाग कम क्रियाशील होने से ही वह स्त्री को अपने बाँये भाग में बैठाता है। ऐसा करने से स्त्री की ऋण विद्युत पुरुष की धन विद्युत को बल देती है। परिणामतः स्त्री के सहारे से पुरुष अपना भावात्मक विधान प्रस्तुत कर सकता है। स्त्री के मस्तिष्क के दोनों तरफ संतुलन रहता है। इसी कारण वे हिंसात्मक और आक्रामक प्रवृत्तियों के लिये उत्तेजित नहीं होती हैं। पुरुष उत्तेजित अधिक होता है। उसका बाँया हिस्सा कम Active रहने से तनावग्रस्त स्थिति में उसके हृदय की धड़कनें तेज हो जाती हैं। स्त्रियों की अपेक्षा पुरुष अधिकं मात्रा में हृदय रोग से ग्रसित होते हैं। हृदय बाँयी तरफ है। यकृत (Liver) दाँयी ओर है। पुरुष का liver fast होता है, अतः वह स्त्री की अपेक्षा अधिक भोजन ले सकता है, पचा सकता है और स्त्री की अपेक्षा उसका शरीर-बल अधिक होता है। जब कि स्त्री का पुरुष की अपेक्षा से मनोबल अधिक होता है, वह समय पर भावना एवं सूझबूझ द्वारा संयोजन और संतुलन को प्रस्तुत कर नारीत्व की गरिमा का प्रमाण प्रस्तुत करती है। ____ मस्तिष्क में विद्युत के साथ तरंगें भी निरंतर प्रवाहित होती रहती हैं। जैसे-अल्फा, बीटा, डेटा, थीटा आदि। इन तरंगों के संचालन का काम भी विद्युत का है। बाहर का पर्यावरण हो चाहे भीतर का वातावरण हो, इनमें परिवर्तन होता रहता है। जिसमें अल्फा तरंगों से व्यक्ति में आनन्द की भावना बनती है और अन्य बीटा, डेटा, थीटा आदि से विषाद, उन्माद आदि पनपते हैं। महापुरुषों का भीतर का वातावरण प्रकंपनों से रहित शांत होता है अतः उनमें अल्फा तरंगें अधिक होती हैं और वे इतनी दृढ़ होती हैं कि उन पर बाह्य वातावरण का प्रभाव नहीं होता है। एक अल्फाकण दो प्रोटोन के बराबर माना जाता है वैसे ही एक बीटाकण इलेक्ट्रोन के बराबर होते हैं। ___अरिहंत के स्वरूप और उनसे संबंधित मन्त्रों से या उनको किये जाने वाले नमस्कार से हम में कैसे परिवर्तन संभव हो सकता है इसका अब प्रयोग के माध्यम से अनुभव करना चाहिये। समस्त पर्यायें वातावरण और परिस्थिति के अनुसार मुख्यतः दो भागों में विभक्त हैं-१. उत्पत्ति और २. नाश। इसके अनुभूति के रूप में समझने के भी दो विभाग हैंकणात्मक पार्टीकल Particle accept और तरंगात्मक Wave accept.
SR No.002263
Book TitleArihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1992
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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