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________________ ३६ सम्बन्ध-दर्शन-अरिहंत और हम से नाड़ी तंतु रीढ़ की हड्डी को जाते हैं। ये तंतु चलते समय होने वाली तकलीफों की सूचना मस्तिष्क के इस हिस्से को भेजते हैं तब इस हिस्से में समाहित अन्य तंतु पैर को उठा लेने की सूचना भेजते हैं। __इस प्रकार विधिपूर्वक चलने की प्रक्रिया का हमारे मस्तिष्क पर भी असर होता - कितना वैज्ञानिक है ईर्यासमिति का विधान। हमारी अपनी सुरक्षा के साथ सृष्टि के अन्य प्राणी की सुरक्षा। अभय पूर्ण आँखों से भयरहित नजर का गौरव भरा नजारा। अब देखो ईर्यापथिक कायोत्सर्ग का विधान। श्रमण चाहे कोई भी प्रवृत्ति करें पर . उसके अन्त में उसे ईर्यापथिक का कायोत्सर्ग जरूर करना होता है। कई बार प्रश्न होता है ऐसा क्यों? किसी भी प्रवृत्ति को विधिपूर्वक करने से उससे सम्बन्धित अन्य प्राणियों की सुरक्षा का भी ध्यान रखना जरूरी है। फिर भी कई बार विराधना या अशातना हो ही जाय तो निवर्तना के लिए इस कायोत्सर्ग का विधान है। ईर्यापथिक सूत्र सब जीवों के प्रति स्नेह, सुरक्षा एवं सामंजस्यपूर्ण विचारधारा का मंगलमय सूत्र है। जब साधक इस सूत्र द्वारा सद्भावना पूर्ण व्यवहार से कायोत्सर्ग करता है तब समस्त मांसपेशियाँ शिथिल होकर शांतिपूर्ण भावों से ऑक्सीजन का सम्पादन करती हैं। कार्य प्रवृत्ति की लीनता से और अन्य आत्माओं के साथ अविवेक से हुए दुर्भावनापूर्ण वातावरण से मांसपेशियों में संचित ग्लाइकोजन (Glycogen) जो फर्मेन्टेशन की क्रिया द्वारा लेक्टिक अम्ल (lactic acid) और फटीग टोक्सिन (fatigue toxin) में बदल गया है; वह पुनः ग्लाइकोजन में परिवर्तित हो जाता है। ग्लाइकोजन से मांसपेशियों को पुनः ऊर्जा मिलती है। थकी हुई कोशिकाओं को विश्राम मिलता है और नष्ट-सी कोशिकाएँ पुनः ठीक होने लगती हैं। इस प्रकार ईर्यापथिक कायोत्सर्ग एक जैविक प्रक्रिया है। मानवीय जीवन की सुरक्षा क्रिया (Defence Mechanism) है। २. आहार चर्या आहार के सम्बन्ध में बहुत कुछ कहा गया है जिसे मुख्यतः चार बातों द्वारा पूर्णतः समझा जाता है १-संतुलित आहार। २-खाने की वृत्ति को संक्षिप्त (छोटी) रखना। ३-रस रहित आहार करना और ४-आहार करते समय साधक (ग्रास को) बाँए जबड़े से दाहिने जबड़े में न ले जाए और दाहिने जबड़े से बाँएं जबड़े में न ले जाए।
SR No.002263
Book TitleArihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1992
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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