SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४ सम्बन्ध-दर्शन-अरिहंत और हम एक आँख बन्द करके देखें तो दूर की वस्तुएँ लगभग उतनी ही स्पष्ट दिखाई देती हैं जितनी कि दोनों आँखों से दिखाई देती हैं। लेकिन एक आँख को बन्द करके पास की वस्तुओं को देखने में काफी अंतर आ जाता है। बाँयी आँख बन्द करने पर बाँयी ओर की वस्तुएँ और दाँयी आँख बन्द करने पर दाँयी ओर की वस्तुएँ दिखाई नहीं देतीं। दूरी का सही-सही बोध हमें दोनों आँखों की सहायता से होता है। एक आँख से देखने पर हमें वस्तुओं के दो आयामों (Dimensions) का ही आभास हो पाता है लेकिन दोनों आँखों से देखने पर वस्तु की लम्बाई, चौड़ाई और मोटाई तीनों का ही . ज्ञान प्राप्त हो जाता है। दोनों आँखों से देखने पर वस्तु के ठोसपन (Solidity) और . गहराई (Depth) का ज्ञान प्राप्त होता है। साथ ही पैर की एड़ियों की अपेक्षा अगले . हिस्से पर शरीर का वजन पड़ता है, अतः हृदय रोग की संभावना नहीं होती है। देखने की यह स्थिति समझने के बाद हमें प्रभु के सिद्धांत में दिये गये नाप से . इसकी गहराई पानी है। युगमात्र का मतलब होता है-व्यक्ति के अपने शरीर से साढ़े : तीन हाथ की दूरी। हमारे कदम से हम उतनी दूर नजर डालते हुए चलें। इससे कम या अधिक देखने से खतरा है अतः इतना ही नाप दिया गया। साधक कभी. तीव्रगति से . नहीं चलता है जैसे कि आचारांगादि सूत्रों में कहा गया है। ... ___सामान्यगति (Normal speed) में इतनी दूरी पर देखने से नजर, प्राणी, पदार्थ और कदम का Adjustment हो सकता है। इससे अधिक फासले में नजर अस्पष्ट रहती है और गति के अनुसार उस प्राणी या पदार्थ तक पहुँचे कदम मस्तिष्क सूचना से परे हो जाते हैं। इससे कम फासले पर नजर रहने से नजर का फैलाव कम होगा, पलकों को अधिक झुकना पड़ेगा और ऐसा होने से आसपास के वातावरण से सम्बन्ध टूट जाएगा। कदम और गति के तालमेल की अस्तव्यस्तता से प्राणी या पदार्थ से जहाँ बचना जरूरी हो वहाँ नहीं बचा जाएगा। गर्दन अधिक झुकेगी, अधिक समय तक दो या तीन हाथ अथवा इससे कुछ कम या अधिक अंतर पर नजर फेंकने से झुकी गर्दन के कारण रीढ़ की हड्डियों पर जोर पड़ने से वे संवेदनशील, अस्तव्यस्त या disorder हो जाती हैं। साढ़े तीन हाथ के फासले में गर्दन न तो आगे की ओर अधिक झुकती है, न पीछे की ओर अधिक झुकती है। गर्दन को जरूरत से अधिक झुकाकर बिना देखकर चलने से इसका असर मस्तिष्क पर पड़ता है। मस्तिष्क के अस्तव्यस्त होने से उसकी लयबद्धता टूट जाती है। मस्तिष्क हमारे शरीर का अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है, यह केन्द्रीय नाड़ी संस्थान का एक हिस्सा है। यह कोशिकाओं से बना हुआ है। हमारे मस्तिष्क में लगभग दस अरब कोशिकाएँ हैं। मस्तिष्क द्वारा ही सोना, उठना, बैठना, चलना, खाना, पीना, पचाना, तापमान को समान रखना, देखना, सुनना आदि समस्त क्रियाएँ नियंत्रित होती हैं।
SR No.002263
Book TitleArihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1992
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy