SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्हम जैन दर्शन में योग एक समालोचनात्मक अध्ययन विषय पर लिखित शोध प्रबन्ध मैंने पढ़ा। मैं अपनी पूर्व धारणा के अनुसार ऐसा ही समझता था कि योगाश्रमों में आसन, प्राणायाम आदि प्रेक्टिकल रूप में करवाये जाते हैं इसका विषद विवेचन इस कृति में होगा किन्तु जैसे ही शोध प्रबन्ध में योग की रासायनिक प्रक्रिया प्रयोग और परिवर्तन के रूप में पढ़ा तुरंत ही मैं अपने आपको भीतर ढूँढने लगा और एकाएक मुझमें परिवर्तन हो गया। पढ़ते-पढ़ते मैं उस क्षितिज तक पहुँच गया जहाँ अन्तर उद्भूत आनंद ही आनंद था। मैं आज दिन तक जिस विषय में अज्ञात और अबूझ रहा वह यहाँ आकर ज्ञेय और स्पष्ट हो गया। समय ने कैसे करवट बदल दी इसका अनुभव प्रत्यक्ष हुआ और मैं मन ही मन साध्वीजी के प्रति श्रद्धा विनत हो गया। क्योंकि साध्वीजी ने वर्तमान समस्याओं के संदर्भ में जिस विषय का मूल्यांकन किया है उन्हें समाहित करना युग की अनिवार्यता है। तनाव से मुक्त होने के लिए आज योग और तत् सम्बन्धी प्रयोग की नितांत आवश्यकता है। वैज्ञानिकों के माध्यम से सुख-सुविधा के अनेक साधन उपलब्ध होने पर भी शान्ति का अभाव सर्वत्र छाया हुआ है। नैतिक चेतना ने तो हमारा सहयोग ही त्याग रखा है, अध्यात्म- भावना, ध्यान समत्व और वृत्तिओं के क्षय की साधना ने हमें भयभीत कर रखा है। इसके समाधान के लिए बौद्धिक विकास का संतुलन इस शोध प्रबन्ध से सहज मिल सकता है। ____ हमारे निषेधात्मक और विधेयात्मक दृष्टिकोण का नया क्षितिज इस शोध से खुल सकता है, ऐसी मेरी धारणा है। मैं सोचता हूँ कि इस शोध प्रबन्ध के माध्यम से न केवल जैन ही किन्तु. शान्ति के इच्छुक सभी जन लाभान्वित हो सकते हैं। यह कृति हृदयस्पर्शी है, जीवन परिवर्तन शोधन में सहयोगी है और शान्ति, प्रसन्नता का आनंद देने वाली है। ... यह शोधकृति पाठकों को एक नयी दिशा, एक नया जीवन का मूल्यांकन और एक नयी खोज, भीतर के द्वार को खोलने की खोज, उत्पन्न करती है। भीतर के रासायनिक रहस्यों का आमूल परिवर्तन अनेक जन्मों का परिश्रम होने पर भी नहीं होता है। जनम-जनम से इस शक्ति का स्रोत बहाने पर भी योग के बिना इसकी उपलब्धि नहीं हो सकती आज यह योग का प्रयोग आपके द्वार पर स्वयं चलकर आया है। मुझे आशा ही नहीं विश्वास है कि यह कृति देश-विदेश और समूचे विश्व में पढ़ी जायेगी। डॉ. दौलतसिंह कोठारी भू. पू. कुलपति जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय [२१]
SR No.002263
Book TitleArihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1992
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy