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________________ १०६ सम्बन्ध-दर्शन-अरिहंत और हम . . . . आरोग्य स्वाभाविक ही उपलब्ध हो जाता है वैसे ही कर्म-बन्धनों के छूट जाने पर आत्मा मुक्त हो जाता है, ऐसी आत्मा की सम्पूर्ण आरोग्यवाली मुक्तावस्था ही मोक्ष है। ___ मोक्ष के उपाय हैं-मिथ्यात्व, अज्ञान और हिंसादि रूप अविरति आदि कर्म बंधन के मूलभूत कारण हैं। उनके प्रतिपक्ष रूप में सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र कर्ममुक्ति के कारण हैं। कर्ममुक्ति के कारणों को अपनाने से और कर्म-बंधन के कारणों को हटाने से मोक्ष हो सकता है। विनय-पद कर्मों का विशेष प्रकार से अपनयन करना अर्थात् दूर करना विनय है। जो संसार को जो करता है वह विनय है। वस्तुतः विनय अन्तरंग भाव जगत की सूक्ष्म अवस्था है। विनय का बहिरंग रूप भी वास्तव में परगुण दर्शनरूप है। विनय भाववाचक संज्ञा है। जिनमें गुणों के दर्शन होते हैं; उन्हीं का विनय हो सकता है अन्यथा होने वाला केवल व्यवहार या औचित्य मात्र है। जिनागमों में “विनय" शब्द अधिकतर तीन अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। १-विनय-अनुशासन। २-विनय-आत्मसंयम-शील (सदाचार)। ३-विनय-नम्रता एवं सद्व्यवहार। विनय सात प्रकार का है१-ज्ञान विनय ५-वचन विनय २-दर्शन विनय ६-काय विनय ३-चारित्र विनय ७-लोकोपचार विनय ४-मन विनय १. ज्ञान विनय-निरंतर नया ज्ञान प्राप्त करे और अतीत में प्राप्त किये ज्ञान की आवृत्ति करे, तथा ज्ञान द्वारा संयम-कृत्य करे अर्थात् नये कर्मों का बंधन न करे और पूर्वकृत कर्मों को दूर करे, वह ज्ञान-विनय है। २. दर्शन-विनय-जिनेश्वर द्वारा दर्शाये गये धर्मास्तिकायादि द्रव्यों को और अगुरुलघु आदि भावों को तत्स्वरूप में ही समझना, मानना तथा स्वीकारना दर्शन-विनय है। ३. चारित्र विनय-विनय पूर्वक आठ प्रकार के कर्मों के समूह को रिक्त कर संयम मार्ग में यतनापूर्वक रहे फिर भी जो कर्म बंधे वे अल्प ही हों अतः इसे चारित्र विनय कहते हैं। ___४. मन विनय-मन से किये जाने वाले इस विनय के दो प्रकार हैं-अकुशलमननिरोध, और कुशलमन उदीरणा। आर्तध्यान, रौद्रध्यान आदि से मन को रोकना, अकुशल मन निरोध है और धर्मध्यान, शुक्लध्यान कुशलमन उदीरणा है।
SR No.002263
Book TitleArihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1992
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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