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________________ ३०० भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् यह सुनकर चक्रवर्ती के अन्य पुत्र तथा वीर सुभट प्रसन्न हुए। रात को ज्यों-त्यों बिताकर, सब रणभूमी में उतर आए । १०२. सन्नद्धाः शस्त्रसंपूर्णा, भटा बाहुबलेरपि । अवतेरू रणक्षोणों, चन्द्रकन्यामिव द्विपाः ॥ बाहुबली के वीर सुभट भी सम्पूर्ण रूप से शस्त्रों से सज्जित होकर रणभूमी में उसी प्रकार उतरे जैसे हाथी नर्मदा नदी में उतरते हैं । १०३. सैन्ये सूर्ययशाः सूर्यो, व्यराजत रथस्थितः । तमांसीवारिवृन्दानि नाशयन् निजतेजसा ॥ 1 रथ पर आरूढ सूर्ययशा सेना में सूर्य की भांति शोभित हो रहा था । जैसे सूर्य अपने तेज से अंधकार को नष्ट कर देता है वैसे ही वह शत्रु समूह को नष्ट कर रहा था । १०४. भ्रातरः कोटिशस्तस्य, शालायाः पुरोऽभवन् । क्षत्रियक्षेत्रसंप्राप्तजन्मशौर्याङ्कुरा इव ॥ उसके शार्दूल आदि करोड़ों भाई उससे आगे हो गए, मानो क्षत्रिय के शरीर में जन्म से संप्राप्त शौर्य के अंकुर फूट पड़े हों । १०५. विद्याधरधरेन्द्रौ ताववग्राहाविवोद्धतौ । चक्रभृध्वजिनीवृष्टिध्वंसाय पुनरागतौ ॥ विद्याधरों के अधिपति मितकेतु और सुगति - दोनों उद्धत वीर 'सूखे' की भांति चक्रवर्ती की सेना रूपी वृष्टि का ध्वंस करने के लिए पुनः रणभूमी में आ गए। १०६. हस्तापितधनुर्बाणो, मितकेतुर्नभश्चरः । आरौत्सीत् सूर्य यशसं मनोभूरिव शंवरम् ॥ 1 हाथ में धनुष्य और बाण लिए विद्याधर मितकेतु ने सूर्ययशा को वैसे ही रोका, जैसे कामदेव 'शंवर' को रोकता है । १०७. विद्याभृत् सुगतिस्तदवच्छाई लमरुधत् ततः । आसीद् युद्धं तयोर्घोरं विस्मायितसुरासुरम् ॥ 1 १. चन्द्रकन्या – नर्मदा नदी । २. शंवर:- कामदेव का शत्रु (अरी शंवरशूर्पको – अभि० २।१४२ )
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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