SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७६ . जैनधर्म में सम्यक्त्व का स्वरूप शब्द पृष्ठ संख्या निर्देश-१०१ निर्वेद-१४५ निवृत्तिबादर-७२ १२४ निःकांक्षित- ३० ३२, ४२, ४४, ६९, ७०, निर्मोह ६३ . निर्विचिकित्सा-४२ निर्विचिकित्सक-३०, ३२, ४५. शब्द पृष्ठ संख्या दशपूर्वधर-५८ दशाश्रुतस्कन्ध-४३, ४६, ४६ द्वादशाङ्गी-९ द्वादशांङ्गगणिपिटक-५८, ५९ दुःख शय्या-६८ दृष्टिवाद-१३, ३५, ५८ देवचंद्रसू रि-१४९ देवर्द्धिगणि-१३, ५७ . देववाचक-५७, ६१, ६३, ६४ देवताभियोग-१४६, १६२ देशनालब्धि-१५२ देशोपशमना-१३७ धर्मकथित १४३ धर्मदासगणि १५० धर्मपरीक्षा १६ धर्मबिंदु-१४९ धर्मरुचि-४२, ६७ धर्मश्रद्धालु-२८ नंदी सूत्र ५७, ५९, ७६ नय १०० नारद २२१ निदिध्यासन १९७ निम्बार्क २०५ नियमसार-११०, १११ निर्ग्रन्थ धर्म-६, ७ निर्ग्रन्थ प्रवचन-३०, ७० निर्जरा-९७ निहनव-६५. निःशंक-२९, ३०, ३२ निःशंकित-४२, ४४, ६९, ७०, ७५ निशीथ चू ला-४३ निशीथ सूत्र-४३, ४४ निःश्रेयस-७' निश्चय नय-११०, १११ निसर्ग-९८, ९९, १०० निसर्गरुचि-४०. ६७ निसर्ग सम्यग्दर्शन-६६ . नीवरण-१७९ नेमिचंद्राचार्य-१५४, १५५ नैमित्तिक-१४३ नैयायिक ९२ न्यग्रोधिका ८६ न्यायवैशेषिक दर्शन .१९२ पंचमहाव्रत ७० पंचसंग्रह १३१
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy