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________________ जैन दर्शन में सम्यक्त्व का स्वरूप योग दर्शन संपा. शर्मा श्री राम बरेली : संस्कृति संस्थान, प्रथम संस्करण, १९६४. षट्खण्डागम (धवला टीका) पुष्पदन्त, भूतबलि टी. वीरसेनाचार्य संपा. जैन, हीरालाल, अमरावती : जैन साहित्योद्धार फंड कार्यालय, १९३९...' षट्रप्राभृतादि संग्रह ___ कुंदकुंदाचार्य संपा. पं. पन्नालाल मा. दि. जै. (२) ग्रन्थमाला समिति : बम्बई, प्रथमावृत्ति ।.. श्रावक धर्म विधि प्रकरण हरिभद्रसूरि वृत्ति. मानदेवसूरि भावनगर : आत्मानंद सभा, १९२४. श्रावक प्राप्ति उमास्वाति, टी. हरिभद्रसूरि संपा. अनु. राजेन्द्रविजय - डीसा : संस्कार साहित्य सदन, प्रथमावृत्ति, १९७२. संबोध प्रकरण ( मूल प्राकृत) . . . हरिभद्रसूरि अहमदाबाद : जैन ग्रन्थ प्रकाशक सभा, प्रथमावृत्ति, १९५६. -अनु. मेरुविजय गणि, प्रकाशक वही. १९५१. . संयुक्त निकाय ( मूल ) भाग १-४ संपा. भिक्षु कश्यप जगदीश बिहार सरकार : पाली प्रकाशन मंडल, १९५९. संयुक्त निकाय ( अनु० ) भाग २-२ ।। संपा. भिक्षु कश्यप जगदीश, भिक्षु धर्म रक्षित बनारस : महाबोधि सभा, प्रथमावृत्ति, १९५४. सन्मति प्रकरण सिद्धसेन दिवाकर, सम्पादक संघवी सुखलाल, दोशी बेंचरदास अहमदाबाद : पूंजाभाई जन ग्रन्थमाला प्रथमावृत्ति, १९५२.
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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