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________________ २५४. आगमसार - देवचन्द्र, १९०८ : राजेन्द्र कार्यालय आचारदिनकर - वर्धमानसूर बम्बई : पांजरापोल लाल बाग, १९२२ । जैन दर्शन में सम्यक्त्व का स्वरूप आचारांग सूत्र - अनु. सौभाग्यचन्द्रजी म., संपादक बसंतीलाल नलवाया उज्जैन : जैन साहित्य समिति, प्रथमावृत्ति, १९५० आचारांग चूर्णि - जिनदास गणिवर्य रतलाम : ऋषभदेव केशरीमल | आचारांग वृत्ति एवं नियुक्ति - शीलांकाचार्य एवं भद्रबाहू | महेसाना : आगमोदय समिति, प्रथमावृत्ति, १९९७ । आत्मानुशासनम् - गुणभद्राचार्य अनु. जैनी जे. एल. । आगास : श्रीमद्राजचन्द्र निजाभ्यास मण्डप, प्रथमावृत्ति, १९५८. आवश्यक सूत्र - सम्पादक : मुनि कन्हैयालालजी, द्वितीयावृत्ति, १९५८. राजकोट : अ. भा. श्वे. स्था. जैन शास्त्रोद्धार समिति । आवश्यक निर्युक्ति दीपिका भाग १-२ - जिनभद्रगणि भावनगर : गुलाबचन्द लल्लुभाई, १९३९ । उपदेशमाला - क्षमाश्रमण धर्मदास गणि, अनु. पद्मविजय, संपा. नेमिचंद्र दिल्ली : निर्ग्रन्थ साहित्य प्रकाशन, प्रथमावृत्ति, १९७१.
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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