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________________ परिशिष्ट-२ ३५. सम्यक्त्व प्रकरण ( दर्शनशुद्धि) - चंद्रप्रभसूरि ३६. सम्यक्त्व प्रकरण बृहद्वृत्ति - स्वोपज्ञ ३७. सम्यक्त्व प्रकरण - टीका - संस्कृत सं. १९८४ में विमलगणि द्वारा रचित ३८. सम्यक्त्व प्रकरण वृत्ति - देवभद्र द्वारा रचित ग्रंथाग्र ५२७. ३९. सम्यक्त्व प्रकरण वृत्ति अथवा रत्नमहोदधि - ग्रंथाग्र ८००० प्रारम्भ • किया चक्रेश्वरसूरि ने पूर्ण किया उनके प्रशिष्य तिलकाचार्य ने, संस्कृत ४०. सम्यक्त्व प्रकरण टीका - अज्ञात कर्ता ४१. सम्यक्त्व प्रकरण वृत्ति - ग्रंथाग्र १२०००, प्राकृत कथाओं में ४२. सम्यक्त्व प्रकाश - अज्ञात ४३. सम्यक्त्वभावना ४४. सम्यक्त्वभावना अवचूरी ४५. सम्यक्त्वमहोदधि ४६. सम्यक्त्वमालां ૨૪૩ ४७. सम्यक्त्वरत्ननिलय - ४८. सम्यक्त्वरहस्यस्तोत्र - सिद्धसूरि ४९. सम्यक्त्वलक्षण ५०. सम्यक्त्व विचार ५१. सम्यक्त्व विचार टीका - कमलसंयम ५२. सम्यक्त्व सत्ता ५३. सम्यक्त्व सप्ततिका अथवा दर्शन सप्ततिका - हरिभद्रसूरि ५४. सम्यक्त्व सप्ततिका विवरण-प्रथाय ७७९१, संस्कृत, सं. ९४२२ संघतिलकसूर द्वारा | ५५. सम्यक्त्व सप्ततिकावचूरी - गुणनिधानसूरि के शिष्य ६
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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