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________________ परिशिष्ट - १ 'सम्यक्त्व' शब्द-सूचित ग्रंथ ' सम्यक्त्व' शब्द का माहात्म्य जैनदर्शन में अत्यधिक है । यह 6 1 इस बात से सूचित होता है कि इस सम्यक्त्व' नाम को लेकर ही पूर्वाचार्यों ने अनेक रचनाएं प्रस्तुत कर दार्शनिक - साहित्य में अभिवृद्धिं करी है । वैसे तो सम्यक्त्व विषय से तो सामान्यतया जैन साहित्य का कोई ही ग्रन्थ अछूता रहा हो । परन्तु स्वतन्त्र इस अभिधान को ही ग्रहण कर अनेकानेक रचनाएं हुई और अद्यावधि हो रही है । प्राचीन आचार्यों की कृतियों का ही यहाँ उल्लेख किया जा रहा है यदि आधुनिक रचनाओं का भी इसमें समावेश किया जाय तो यह संख्या बढ़ती ही चली जायेगी । निम्न ग्रन्थों में से भी आज प्रकाशित हो अत्यल्प ही है । 6 . १. सम्यक्त्वकलिका - (ग्रंथाग्र ३० ) १ २. (क) सम्यक्त्वकुलक - १७ गाथा ३. (ख) सम्यक्त्व कुलक - ३५ गाथा अमरचंद्रसूरि कृत ४. (ग) अज्ञातकृर्तक - प्राकृत १५. सम्यक्त्वकौमुदी (क)- १४८८ श्लोक, संस्कृत, सं. १५१४ में चैत्र गच्छीय गुणाकरसूरि कृत ६. सम्यक्त्वकौमुदी (ख) - प्रथा ९९५, संस्कृत, सं. १४५७ में जयशेखर द्वारा रचित | ७. सम्यक्त्वकौमुदी ( ग ) - संस्कृत, १४८७ में जिनहर्षगण द्वारा रचित ( प्रकाशित ) ८. सम्यक्त्वकौमुदी वृत्ति - संस्कृत, १४९७ में जयचंद्रगणि रचित १. संख्या १ से ८१ तक 'जिन रत्न कोष' में से ली गई है। पृ. ४२३ से ४२७ तक ।
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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