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________________ अध्याय २ ___ (आ) दिगम्बर साहित्य १. आचार्य श्री कुंदकुंद दिगम्बर जैन परम्परा के आचार्यों में श्री कुंदकुंदाचार्य का जो महत्त्व है वह अनुपम है। उनके महत्त्व का ख्यापन करने वाला एक श्लोक अतिप्रसिद्ध है मंगलं भगवान वीरो मंगलं गौतमो गणीं । मंगलं कुंदकुंदार्यों जैनधर्मोऽस्तु मंगलम् ॥ भगवान् महावीर, गौतम गणी, कुन्दकुन्दाचार्य और जैन धर्म मंगल रूप है। यह श्लोक इस बात का सूचक है कि कुन्दकुन्द का स्थान दिगम्बर जैनाचार्यों में सर्वोपरि माना जाता है।' ___कुन्दकुन्दाचार्य के समय के विषय में काफी मतभेद है। आज उनका समय विद्वद्गण "विक्रम की तीसरी शताब्दी का पूर्वार्द्ध अथवा ईसा की दूसरी शताब्दी का उत्तरार्ध ही समुचित है” यह स्वीकार करते हैं। . किंतु डॉ. उपाध्ये कुन्दकुन्दाचार्य का समय ईस्वी सन् का प्रारंभ का स्वीकार करते हैं। . आचार्य कुन्दकुन्द का समय जो भी माना जाय किंतु तत्त्वार्थ और आः कुन्दकुन्द के ग्रन्थगत दार्शनिक विकास की ओर ध्यान दिया — जाय तो वा. उमास्वाति के तत्त्वार्थगत जैन दर्शन की अपेक्षा आ. कुन्दकुन्द के ग्रन्थगत जैन दर्शन का रूप विकसित है, यह किसी भी दार्शनिक से छिपा नहीं रह सकता। अतएव इतना हम स्पष्ट कह सकते हैं कि वाचक उमास्वाति से कुन्दकुन्दाचार्य पश्चात्वर्ती हैं। १. कुंदकुंद प्राभृत संग्रह-प्रस्तावना, पृ० १ ॥ २. वही, पृ० ३२॥ ३. प्रवचन सार, प्रस्तावना, पृ० २२ ।।
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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