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________________ (पओ अधर - प्रतोदधर) उन्हें हाँकते समय नोकदार छड़ी (पओद लट्ठी) का उपयोग करते थे । बढ़िया किस्म के यानों में रथ का उल्लेख मिलता है । शिबिका (शिखर के आकार की ढँकी हुईं पालकी) और स्यन्दमानी (पुरुष प्रमाण पालकी) का उपयोग राजाओं व.धनिकों द्वारा किया जाता था । रथों में घोड़े जोते जाते थे । चार घोड़ों वाले रथों का उल्लेख आगमों में मिलता है। युग्म (जुग्ग) गिल्क्षणी और थिल्ली का भी उल्लेख मिलता है । दो हाथ प्रमाण चौकोन वेदी से युक्त पालकी को युग्म कहते हैं । गोल्ल देश (गोल्लि-गुंटूर जिला) में इसका प्रचार था। दो पुरुषों द्वारा उठाकर ले जाई जाने वाली डोली को गिल्ली तथा दो खच्चरों के यान को थिल्ली कहा जाता था । 1 | 1 स्थल मार्ग के यातायात के साधन ऊपर बताए गए हैं। जलमार्ग के यानों में नाव का प्रमुख स्थान था। नदियों में नावों द्वार माल ढोया जाता था । नदी तट पर उतरने के लिए स्थान बने रहते थे तथा नावों द्वारा नदियों में इस पार से उस पार जाया जाता था । नावों को अगट्ठिया, अन्तरडक गोलिया (डोंगी) और कोचबीरग (जलयान) आदि कहा जाता था । कुछ नावें हाथी की सूँड के आकार की होती थी । आगम साहित्य में चार प्रकार की नावों का उल्लेख मिलता है- अनुलोम गामिनी, प्रतिलोम गामिनी, तिदिच्छ संतारणी (एक किनारे से दूसरे किनारे पर सरल रूप से जाने वाली और समुद्र गामिनी । समाज विकास के प्रारंभिक समय में मशक (हति-दइय) और बकरे की खाल पर बैठकर भी लोग नदी पार करते थे । इसके अतिरिक्त चार काष्ठों के कोनों पर चार घड़े बाँधकर, मशक में हवा भरकर, तुम्बी' के सहारे, घिरनइ (उडुप) पर बैठकर तथा पण नामक लताओं से बने दो बड़े टोकरों को बाँधकर उनसे नदी पार करते थे । नाव में लंबा रस्सा बाँधकर उसे किनारे पर स्थित वृक्ष अथवा लोहे के खूंटे में बाँध दिया जाता था । मूँज अथवा दर्भ अथवा पीपल आदि की छाल को कूटकर बनाए हुए पिंड (कुट्टबिंद) से अथवा वस्त्र के चिथड़ों के साथ कूटे हुए पिंड (चेलमट्टिया) से नाव का छिद्र बंद किया जाता था । 1 1 व्यापारी जहाजों से समुद्र की यात्राएँ किया करते थे । जहाज के लिए पोतवहन, वहन और प्रहण आदि शब्दों का प्रयोग मिलता है । जहाज पवन के जोर (पवन बल समाह्य) से चलते थे । उनमें डांडे और पतवारे रहती थी । लोग पाल के सहारे जहाज को आगे बढ़ाते थे । लंगर डालकर जहाज ठहराया जाता था । निर्यामक (निज्जामय) जहाज को खेते थे । जहाज के अन्य कर्मचारियों में कुक्षिधारक, कर्णधार और गर्मज (जहाज पर छोटा-मोटा काम करने वाले) के नाम गिनाए गए हैं। (२१७)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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