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________________ [१०३ प्रतिक्रमण विधि संग्रह श्रीहरिप्रभसूरिरचित यति दिनकृत्य की प्रतिक्रमण विधि "अर्द्ध निमग्ने बिम्बे, भानोः सूत्र भणन्ति गीतार्थाः । इतिवचनप्रामाण्यावसिकावश्यके कालः ॥४२॥ अथवाप्येतन्निाघाते, मुनयस्तथा प्रकुर्वीरन् । आवश्यके कृतेसति, यथा प्रदृश्येत तारिकात्रितयम् ॥४३।। धर्मकथादिव्यग्रे, गुरौ तु मुनयः स्थिता यथास्थानम् । सूत्रार्थस्मरणपरा-श्चापृच्छय गुरुं प्रतीक्षन्ते ॥४४॥ आवश्यकं विदधते, पूर्वमुखास्तेऽथवोत्तराभिमुखाः। श्रीवत्साकारस्थापनां समाश्रित्य तिष्ठन्तः ॥४५।। प्राचार्या इह पुरतो द्वौपश्चात्तदनु त्रयस्तस्मात् । द्वौ तत्पश्चादेको, रचनेयं नवकगणमानात् ॥४६॥ (हरिप्रभकृत यतिदिनकृत्ये पत्र. ८-8) भावार्थ--सूर्य मण्डल प्राधा अस्त हुआ हो उस समय गीतार्थ "करेमि भन्ते" इत्यादि प्रतिक्रमणसूत्र पढते हैं। उक्त वचन की प्रमाणिकता से देवसिक प्रतिक्रमण का समय भी यही समझना चाहिये । ' परन्तु यह प्रतिक्रमण समय निर्व्याघात प्रतिक्रमण का समझना चाहिए। इस समय में मुनि निर्व्याघात प्रतिक्रमण करते हैं और इस के समाप्त होने पर आकाश में दो तीन तारे दीखने लगें तब इस की समाप्ति का समय होता है धर्म कथादि करने में गुरु व्यग्न हो उस समय शेष साधु प्रतिक्रमण की मण्डली में अपने अपने स्थानों पर गुरु को आज्ञा लेकर बैठ जाते हैं और सूत्र अर्थका स्मरण करते हुए गुरु की प्रतीक्षा करते हैं।
SR No.002245
Book TitlePratikraman Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherMandavala Jain Sangh
Publication Year1973
Total Pages120
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, Vidhi, & Paryushan
File Size8 MB
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