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________________ -] पाप फल (रौरव नरकादि) को जो जानते हैं वे जिन कथित मार्ग से अज्ञ और जीव घातक ऐसे शस्त्र से प्रहार करने वालों के प्रति भी (द्रोह का विचार, मारने का चिंतन आदि) पाप नहीं करते (विपरीत यहाँ करुणा का चिंतन करते है कि-अरे यह बेचारा मेरा निमित्त पाकर पापकर नरक में गिरेगा?) ।।१७६ ।। वहमारणअब्भक्खाण-दाणपरधणविलोवणाईणं । सव्यजहन्नो उदओ, दसगुणिओ इक्कसि क्याणं ॥१७७॥ ताडना, प्राणनाश, अभ्याख्यान, परधन-हरण (आदि पद से अन्य मर्मोद्घाटन आदि) एक बार सेवन से कम से कम विपाक दस गुना आता है। (जैसे एक बार मारने वाला दस बार मारा जाता है) ।।१७७।। तिव्ययरे उ पओसे, सयगुणिओ सयसहस्सकोडिगुणो । कोडाकोडिगुणो वा, हुज्ज वियागो बहुतरो वा ॥१७८॥ ... तब जो अत्यधिक द्वेष हो तो (किये पाप का) सो गुना, लाख गुना, क्रोड गुना, या क्रोडा क्रोड गुना फल भोगना पड़ता है, या उससे भी अधिकतर भोगना पड़ता है। (इस कारण राग ही उत्पन्न न हो, रागद्वेष के संक्लेश ही उत्पन्न न हो वैसे अप्रमत्त रहना चाहिए ।।१७८।। केइत्थ करेंतालंबणं, इमं तिहुयणस्स अच्छेरं । . जह नियमा खवियंगी, मरुदेवी भगवई सिद्धा ॥१७९॥ .... कितनेक इस विषय में (क्वचित् बनने वाले) आश्चर्यकर घटना का आधार लेते हैं जैसे कि भगवती मरुदेवा माता ने यम, नियम पालन (तप संयम के कष्ट द्वारा देह दमन) से कर्मक्षय किये बिना वैसे ही शुभ भाव से कर्म क्षयकर मोक्ष प्राप्त किया। (इस प्रकार हमारा भी मोक्ष हो जायगा। तप, संयम रूपी कष्ट सहन की क्या आवश्यकता?) ।।१७९।। .... किं पि कहिं पि कयाई, एगे लद्धीहि केहि वि निभेहिं। पत्तेयबुद्धलाभा, हवंति अच्छेरयभूया ॥१८०॥ (ऐसा आलंबन लेना अयोग्य है क्योंकि-) कभी कोई स्थान पर कोई व्यक्ति (वृषभादि पदार्थ) देखकर (करकंडु जैसे) प्रत्येक बुद्धता के लाभवाले बनें और कोई वैसी लब्धिरूप निमित्तों से बनें। उससे वैसे आलंबन से प्रमादी न बनना, नहीं तो मोक्ष ही नहीं होगा) ।।१८०।। ... निहिं संपत्तमहन्नो, पत्थिंतो जह जणो निरुत्तप्पो । इह नासइ तह पत्तेअ-बुद्धलच्छिं पडिच्छंतो ॥१८१॥ श्री उपदेशमाला
SR No.002244
Book TitleUpdesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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