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________________ गुरु के सामने भी अक्कड रहनेवाला, गुरु के छिद्र देखने वाला, गुरु की निंदा करने वाला, स्वच्छंद मति से चलने वाला अस्थिर चित्तवाला, ( दृष्टांत - दूसरे - दूसरे शास्त्रों का अंश लेकर चलने वाला, गात्रों को इधर उधर फिराने वाला) वक्र, क्रोधी स्वभाव वाले ऐसे शिष्य गुरु को उद्वेग करवाने वाले होते हैं ।। ७४ ।। जस्स गुरुम्मि न भत्ती, न य बहुमाणो न गउरवं न भयं । नवि लज्जा नवि नेहो, गुरुकुलवासेण किं तस्स ? ॥७५॥ जिस में गुरु भक्ति नहीं, बहुमान नहीं, पूज्य भाव नहीं, अकार्य करने में गुरु का भय नहीं, लज्जा - दाक्षिण्य नहीं ऐसे साधु को गुरुकुलवास क्या ? (ऐसे साधु को गुरुकुलवास का फल नहीं मिलता ) ।। ७५ ।। रूसइ चोइज्जतो, वहड़ य हियएण अणुसयं भणिओ । न य कम्हिं करणिज्जे, गुरुस्स आलो न सो सीसो ॥ ७६ ॥ जो व्यक्ति हितशिक्षा देनेवाले सद्गुरु पर क्रोधित होता है, सारणा वारणादि के समय गुरु पर क्रोध से ग्रंथी बांध लेता है (अवसर मिलने पर क्रोध को प्रकट कर दे ) करणीय सत्कार्य को करे नहीं, वह गुरु का शिष्य नहीं परंतु गुरु के लिए कलंक रूप है ( दुश्मन है ) ।।७६।। उव्विलणसूअणपरिभवेहिं अड़भणियदुट्टभणिएहिं । सत्ताहिया सुविहिया, न चेव भिंदंति मुहरागं ॥७७॥ क्रोधादि का निग्रह करने की शक्तिवान् सुविहित मुनि, स्वयं के वचनों का अनादर करे, चुगली करे, पराभव अपमान करे, विपरीत बोले, कर्कश - कठोर वचन कहे फिर भी अपना मुंह बिगाड़ते नहीं है । (क्योंकि वे ऐसे लोगों की करुणा का विचार करते हैं) ।। ७७ ।। माणंसिणोवि अवमाण - वंचणा, ते परस्स न करेंति । सुहदुक्खुग्गिरणत्थं, साहू उयहिव्य गंभीरा ॥ ७८ ॥ ( इंद्रादि से पूज्य) मानवंत ऐसे भी साधु दूसरे (स्वयं का अहित करने वाले) का भी अपमान या वंचना नहीं करते क्योंकि वे शाता- अशाता की विटंबणा को दूर करने के लिए (कर्म निर्जरा के अंतर्गत शाता - अशाता के हेतुभूत पुण्य-पाप के भी क्षय की प्रवृत्ति वाले होते हैं) और समुद्र सम गंभीर ( उनका उत्तम अंतर भाव दूसरा जान न सके ऐसे गंभीर होते हैं या अपना सुख दुःख दूसरे को कहने के लिए उत्सुक न होने से गंभीर होते हैं। जैसे समुद्र अपने रत्नों को बाहर फेंकने के लिए तैयार नहीं होता) ।। ७८ ।। 17 श्री उपदेशमाला
SR No.002244
Book TitleUpdesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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