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________________ पीड़ा करनेवालों को पीड़ा नहीं करनी वे तो बायले डरपोक हैं' ऐसे अविवेकी लोकों के जैसा नहीं बनना। अहिंसक बनें रहना।] ।।४६३।। पाविज्जड़ इह वसणं, जणेण तं छगलओ असत्तु ति । ' न य कोइ सोणियबलिं, करेइ बग्घेण देवाणं ॥४६४॥ इह-जगत में अविवेकी मानव द्वारा निर्बल को ही दुःख पहुँचाया जाता है जैसे बकरा अशक्त है अतः उसकी बली देकर दुःख पहुँचाया जाता है। मेले देवों के सामने कोई बाघ की बली नहीं देता। अतः हे साधु! तूं वैसा न होकर तेरी हीलना करने वाले तिरस्कार करने वाले निर्बल को भी क्षमा करना। क्रोध या सामना न करना। क्योंकि यह मानव मात्र इस लोक का अपकारी है। परलोक-दीर्घकाल का है. यहाँ कितना जीना है! ।।४६४।। बच्चई खणेण जीयो, पित्तानिलधाउसिंभखोभम्मि । उज्जमह मा विसीअह, तरतमजोगो इमो दुलहो ॥४६५॥ जीव पित्त-वायु-(रंस रुधिरादि धातु के कफ के प्रकोप से क्षणभर में (परलोक) चला जाता है। (इसीलिए हे शिष्यो!) उद्यम करें, (सदनुष्ठानो में) विषाद-कंटाला-शिथिलता ये न करें; क्योंकि 'तरतमजोगो' =एक-एक से उत्तम ये (अब कहेंगे वे) धर्म का साधन-सामग्री का योग दुष्प्राप्य है। (ये जो दुलर्भ पदार्थ अब मिले है, तो प्रमाद करना उचित नहीं।) ।।४६५।। मंचिंदियत्तणं माणुसत्तणं, आरिए जणे सुकुलं । साहुसमागम सुणणा, सद्दहणाडरोग पव्यज्जा ॥४६६॥ ये धर्म साधन पंचेन्द्रियपना, मनुष्य जन्म, आर्यदेश में जन्म, उसमें भी धर्मयोग कुल, सद्गुरु साधु समागम, धर्मशास्त्रों का श्रवण, श्रवण पर श्रद्धा यह ऐसा ही है ऐसी तत्त्वप्रतीति, तत्त्व पर दृढ़ श्रद्धा, नीरोगीपन, संयमभारवहन करने का सामर्थ्य और प्रव्रज्या-सद्विवेक पूर्वक सर्वसंग के त्यागरूप भागवती दीक्षा [ये सभी तरतम योग यानि उत्तरोत्तर उत्तम और • अति दुर्लभ धर्म के निमित्त कारण है। ऐसा उपदेश सुनते हुए भी वर्तमान सुख में लुब्ध-दुर्बुद्धि मानव जो धर्म नहीं करता वह कैसा पश्चात्ताप करता है वह कहते हैं-] ।।४६६।। आउं संविल्लंतो, सिढिलंतो बंधणाई सव्वाइँ । .... देहट्टिइं मुयंतो, झायइ कलुणं बहुं जीयो ॥४६७॥ पित्तादि के प्रकोप से उपक्रम पास में होने से आयुष्य पर उपघात होने से, सभी अंगोपांग के सांधे शिथिल करते हुए और देह की स्थिति को 99 श्री उपदेशमाला
SR No.002244
Book TitleUpdesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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