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________________ गीत, नृत्य, कामोत्तेजक राग रूप चेष्टायें, दृढ़ आलिंगन, वीणा आदि वादित्रों के मधुर शब्द, काम रूपी अग्नि को प्रज्ज्वलित के लिए ईंधन के समान अनेक प्रकार के कर्ण मधुर वचनालाप, भव्य उत्पन्न करनेवाले क्रूर वाक्य तथा शान्त प्राणियों मे भय उत्पन्न करनेवाले, ध्यान का नाश करनेवाले अनेक प्रकार के घोर उपद्रवों के द्वारा उन देवियों ने उन पर भीषण उपसर्ग किया । तब महाराज मेघरथ ने संवेग से विभूषित राग रहित अपना निश्चल चित्त श्री जिनेन्द्रदेव के चरण कमलों में लगाया । देवियों के द्वारा किए गए रौद्र परीषहों पर विजय प्राप्त कर सिंह के सदृश पसक्रमी महाराज मेघरथ मेरु पर्वत के समान निश्चल विराजमान रहे ॥१७०॥ जिस प्रकार विद्युत (बिजली) की लहर सुमेरु पर्वत को नहीं हिला सकती, उसी || प्रकार वे दोनों देवियाँ महाराज मेघरथ के चित्त रूपी पर्वत को चलायमान करने में समर्थ नहीं हो सकीं तथा उनका समग्र परिश्रम व्यर्थ सिद्ध हो गया । तब दोनों देवियों ने परस्पर मे विचार किया-"ईशान इन्द्र का वर्णित प्रत्येक वाक्य अक्षरशः सत्य है।' यह स्वीकार कर उन्होंने मेघरथ को प्रणाम किया, उनकी पूजा की तथा प्रसन्नता के साथ अपने स्थान को लौट गईं । रात्रि के व्यतीत होने पर महाराज मेघरथ ने निर्विघ्न रीति से कायोत्सर्ग का त्याग किया तथा फिर वे धर्मध्यान का सेवन करते हुए निरन्तर भोग भोगने लगे । कालान्तर में देवों एवं देवियों की सभा में सिंहासन पर विराजमान ईशान स्वर्ग का इन्द्र कहने लगा'इस संसार में राजा मेघरथ की प्रिय रानी प्रियमित्र का रूप सबसे उत्तम है, बाह्य हाव-भाव आदि उत्तम गुणों से पूर्ण है तथा अद्वितीय है, उपमा रहित है, सब रूपों से बढ़ कर है, वह मानो पुण्य रूप परमाणुओं से निर्मित है । संसार में उसका -सा रूप अन्य किसी का नहीं है।' इस प्रकार प्रियमित्रा के रूप की प्रशंसा कर ईशान इन्द्र मौन हो गया । इन्द्र की यह उक्ति सुनकर रतिषेणा तथा रतिवेगा नाम की देवांगनाएँ उसका रूप अवलोकनार्थ भूतल पर आईं। जिस समय वे पृथ्वी पर आईं, उस समय प्रियमित्रा के स्नान करने का समय था । उस भद्रा (प्रियमित्रा) को देह पर केवल सुगन्धित तैल मर्दित था एवं अन्य किसी प्रकार के |१५७ श्रृंगार से हीन था । इस निराभरण अवस्था में उसका दर्शन कर दोनों देवियों को इन्द्र के वचनों पर विश्वास हो गया । उस रानी के संग वार्तालाप करने के लिए देवियों ने वैश्य कन्या का रूप धारण किया । तब उन्होंने रानी प्रियमित्रा की सुखी से कहा-'तुम जाकर रानी प्रियमित्रा से निवेदन करो कि आपके दर्शन के लिए दो वैश्य कन्यायें आई हैं।' सुखी ने रानी प्रियमित्रा को सूचित किया । प्रियमित्रा 4 Fb EFF
SR No.002238
Book TitleShantinath Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti Acharya, Lalaram Shastri
PublisherVitrag Vani Trust
Publication Year2002
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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