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________________ देवतामूर्ति-प्रकरणम् . प्रतिमा यदि विषम आसनवाली हो तो व्याधि करने वाली है। अन्याय से पैदा. किये हुए धन से बनवाई हो तो वह प्रतिमा दुष्काल करने वाली होती है। न्यूनाधिक अङ्गवाली हो तो स्वपक्ष और परपक्ष को कष्ट देने वाली है। विवेकविलास अ. १ में लिखा है कि“अन्यायद्रव्यनिष्पन्ना परवास्तुदलोद्भवा। हीनाधिकांगी प्रतिमा स्वपरोन्नतिनाशिनी ॥" प्रतिमा यदि अन्याय से पैदा किये हुए धन से बनवाई हो, मकानादि दूसरे काम के लिये लाये हुए पाषाण आदि की बनवाई हो और न्यूनाधिक अंशवाली हो, तो अपनी और दूसरे की उन्नति का नाश करती है। 20. पद्य-42. . - ऐसा मत्स्यपुराण अ. २२९ श्लोक ४ में कहा है एवं बृहत्संहिता के अ. ४५ में भट्टोत्पल टीका में गर्ग ऋषि का वचन उद्धत है “अतिलोभादसत्याद्वा नास्तिक्याद्वाप्यधर्मतः ॥ नरापचारान्नियतमुपसर्ग: प्रवर्तते ॥” . मनुष्यों के अधिक लोभ से, असत्य व्यवहार से, नास्तिकता से, अधर्म से और दुराचारों से निश्चय करके उत्पात होते हैं। विवेकविलास में कहा है कि"अन्यायकुसमाचारौ पाखण्डाधिकता जने। सर्वमाकस्मिकं जातं वैकृतं देशनाशनम् ॥ अ. श्लोक १०॥" यदि मनुष्यों में अन्याय, दुराचार और छल-कपट की अधिकता बढ़ जाय तथा मूल वस्तुओं में अकस्मात् फेरफार हो जाय तो देश का विनाश होता है। 21. पछ-44. मत्स्यपुराण अ. २२९ श्लोक ८ में भौम उत्पात विशेष रूप से कहा है"चरस्थिर भवौ भौमौ भूकम्पश्चापि भूमिजः । जलाशयानां वैकृत्यं भौमं तदपि कीर्तितम् ॥" चर और स्थिर पदार्थों में विपरीतता हो, भूमिकंप हो और कुआँ तालाब आदि जलाशय में कुछ अकस्मात् परिवर्तन हो जाय तो
SR No.002234
Book TitleDevta Murti Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Bhagvandas Jain, Rima Jain
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1999
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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