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________________ ७. श्री सुमतिनाथ स्वामी चरित्र • घुसत्किरीटशाणागो-तेजिताधिनखावलिः । भगवान् सुमतिस्वामी, तनोत्वभिमतानि वः ॥ भावार्थ - देवताओं के मुकुट रूपी शाण के अग्र भाग के कोनों से जिनकी नख-पंक्ति तेजवाली हुई है ऐसे भगवान सुमतिनाथ तुम्हें वांछित फल देवें। पहला भव : ___ जंबू द्वीप के पूर्व विदेह में पुष्कलावती नाम की विजय थी। उसमें शंखपुर नाम का शहर था। वहां विजयसेन नाम का राजा राज्य करता था। उसके सुदर्शना नाम की रानी थी। उसके कोई संतान नहीं हुई। - एक दिन किसी उत्सव में राणी उद्यान में गयी। वहां शहर की दूसरी स्त्रियां भी आयी हुई थी। उनमें एक सेठानी भी थी। आठ सुंदर युवतियां और अन्यान्य नौकरानियां उसके साथ थीं। उन्हें देखकर राणी को कुतूहल हुआ। उसने खोज करवायी कि, वे कौन थी, तो मालूम हुआ कि, आठ युवतियां उसके दो बेटों की बहुए थीं। यह जानकर राणी को आनंद हुआ। साथ ही इस बात का दुःख भी हुआ कि उसके कोई पुत्र नहीं है। उसने राजा को जाकर अपने मन का दुःख कहा। राजा ने राणी को अनेक तरह से समझाया बुझाया और तीन उपवास करके देवी की आराधना की। देवी प्रकट हुई। राजा ने पुत्र मांगा। देवी यह वरदान देकर चली गयी कि एक जीव देवलोक से च्यवकर तेरे घर पुत्र रूप में जन्म लेगा। समय पर राणी गर्भवती हुई। उस रात को राणी ने स्वप्न में सिंह : श्री सुमतिनाथ स्वामी चरित्र : 70 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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