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________________ फूट जायगी और खीर नहीं बनेगी।' ऐसा ही हुआ। गोशालक विशेष नियतिवादी बना। - स्वर्णखल से विहार कर प्रभु ब्राह्मण गांव गये। वहां नंद और उपनंद नाम के दो भाईयों के मुहल्ले थे। प्रभु को प्रतिलाभित किया। गोशालक उपनंद के घर गया। उपनंद के कहने से दासी उसको बासी मात देने लगी। गोशालक ने लेने से इन्कार किया। इसलिए उपनंद के कहने से दासी ने वह भात गौशालक के सिर पर डाल दिया। गोशालक ने शाप दिया – 'अगर मेरे गुरु का तपतेज हो तो उपनंद का घर जल जाय।' एक व्यंतर देव ने उपनंद का घर जला दिया। चंपा नगरी में तीसरा चौमासा।। ब्राह्मण गांव से विहार कर महावीर चंपा नगरी गये। चौमासा वही किया। वहां दो मासक्षमण करके चौमासा समाप्त किया। चंपा से विहार कर प्रभु कोल्लाक गांव में आये और एक शून्य गृह में कायोत्सर्ग करके रहे। गोशालक द्वार के पास बैठा। 1. ऐसी घटनाओं का उल्लेख 'श्रमण भगवान् महावीर' पुस्तक में नहीं है। [पं. श्री ___कल्याणविजयजी लिखित] 2. यह अंगदेश की राजधानी थी। जैनकथा के अनुसार पिता की मृत्यु के शोक से राजगृह में अच्छा न लगने से कोणिक (अजातशत्रु) राजा ने चंपे के एक सुंदर झाड़वाले स्थान में नयी राजधानी बसायी और उसका नाम चंपा रखा। भागवत की कथा के अनुसार हरिश्चंद्र के प्रपौत्र चंप ने इसको बसाया था। जैन, वैदिक और बौद्ध तीनों संप्रदाय वाले उसे तीर्थ स्थान मानते हैं। उसके दूसरे नाम अंगपुर, मालिनी, लोमपादपुरी और कर्णपुरी आदि हैं। पुराने जैनयात्री लिखते हैं कि चंपा पटणा से १०० कोस पूर्व में है। उससे दक्षिण में करीब १६ कोस पर मंदारगिरि नाम का जैनतीर्थ है। वह अभी मंदारहिल नामक स्टेशन के पास है। चंपा का वर्तमान नाम चंपानाला है। वह भागलपुर से तीन माइल है। उसके पास ही नाथनगर भी है। (महावीर नी धर्मकथाओ, पेज नं. १७५) 3. गांव के ठाकूर का लड़का अपनी दासी को लेकर उस शून्य घर में आया। अंधकार में वहां किसी को न देख उसने अनाचार सेवन किया। जाते समय गोशालक ने दासी को हाथ लगाया। इससे युवक ने उसे पीटा। : श्री महावीर चरित्र : 230 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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