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________________ नामकी रानी से विशाखानंदी नाम का एक पुत्र था। राजा के विशाखाभूति नाम का छोटा भाई था। वह युवराज था। उसकी धारिणी नामा स्त्री के गर्भ से, मरीचि का जीव, उत्पन्न हुआ। उसका नाम विश्वभूति रखा गया। [यह .. सोलहवाँ भव है] _ विश्वभूति युवा हुआ तब की बात है। एक बार वह अपने जनाने सहित पुष्पकरंडक नाम के राजा के सुंदर बाग में क्रीड़ा करने गया था। पीछे से राजा का पुत्र विशाखानंदी भी उसी वन में क्रीड़ा करने के इरादे से पहुंचा; परंतु विश्वाभूति को वहां जानकर फाटक ही से लौट आना पड़ा। उसने अपनी माता से यह बात कही। रानी नाराज हुई और उसने विश्वभूति को किसी भी तरह से, बाग से निकालने के लिए राजा को लाचार किया। राजा ने फौज तैयार करने का हुक्म दिया और सभा में कहा कि, पुरुषसिंह नाम का सामंत बागी हो गया है। उसका दमन करने के लिए मैं जाता हूं। विश्वभूति को भी यह खबर पहुंचायी गयी। सरल स्वभावी विश्वभूति तुरंत समा. में आया और राजा को रोक आप फौज लेकर गया। __ जब वह पुरुषसिंह की जागीर में पहुंचा तो उसने पुरुषसिंह को आज्ञा धारक पाया। उसे आश्चर्य हुआ। वह वापिस आया और पुष्पकरंडक नाम के बाग में गया, तो मालूम हुआ कि वहां राजपुत्र विशाखानंदी आ गया है। विश्वभूति बड़ा क्रुद्ध हुआ। उसने द्वारपालों को बुलाया और कहा – 'देखो, मुझे धोखा दिया गया है। अगर मैं चाहूं तो तुम्हारा और राजकुमार का क्षण भर में नाश कर मुझे धोखा देकर इस बाग से निकालने की सजा दे सकता हूं। फिर उसने फलों से लदे हुए एक वृक्ष पर मुक्का मारा। वृक्ष के फल सब जमीन पर आ गिरे। फिर उसने द्वारपालों को कहा – 'देखी मेरी शक्ति? इन फलों की तरह ही मैं तुम लोगों के सिर धड़ से जुदा कर सकता हूं; परंतु मुझे यह कुछ नहीं करना है। जिस भोग के लिए ऐसा छल कपट और बंधुद्रोह करना पड़े उस भोग को धिक्कार है!' विश्वभूति ने उसी वक्त संभूति मुनि के पास जाकर दीक्षा ले ली। राजा विश्वनंदी को यह खबर मिली। उसे अपनी कृति पर दुःख हुआ। उसने : श्री महावीर चरित्र : 198 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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