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________________ प्रभु के सामने अपने पापों की आलोचना कर प्रायश्चित्त लिया। फिर वे चिर काल तक तपस्या कर, केवलज्ञान पाकर मोक्ष में गये। अन्यदा प्रभु विहार कर द्वारिका आये। तब विनयी कृष्ण ने देशना के अंत में पूछा – 'हे करुणानिधि! कृपा करके बताइए कि, मेरा और द्वारका का नाश कैसे होगा?' भगवान् बोले – 'भावी प्रबल है। वह होकर ही रहता है। सौरीपुर के बाहर पाराशर नामक एक तपस्वी रहता है। एक बार वह यमुना द्वीप गया था। वहां उसने किसी नीच कन्या से संबंध किया। उससे द्वीपायन नाम का एक पुत्र हुआ है। वह पूर्ण संयमी और तपस्वी है। यादवों के स्नेह के कारण वह द्वारका के पास ही वन में रहता है। शांब आदि यादव कुमार एक बार वन में जायेंगे और मदिरा में मत्त होकर उसे मार डालेंगे। वह मरकर अग्निकुमार देव होगा सारी द्वारका को और यादवों को जलाकर भस्म कर देगा। तुम जंगल में अपने भाई जराकुमार के हाथ से मारे जाओगे।' ... बलदेव के सिद्धार्थ नाम का सारथी था। उसने बलदेव से कहा - . 'स्वामिन्! मुझ से द्वारका का नाश न देखा जायगा। इसलिए कृपा कर मुझे दीक्षा लेने की अनुमति दीजिए।' बलदेव बोले - 'सिद्धार्थ! यद्यपि तेरा वियोग मेरे लिये दुःखदायी होगा; परंतु मैं शुभ काम में विघ्न न डालूंगा। हां तप के प्रभाव से तूं मरकर अगर देवता हो तो मेरी मदद करना।' उसने यह बात स्वीकार की और दीक्षा ले ली। - भगवान के इतना परिवार था वरदत्तादि ग्यारह गणधर, १८ हजार महात्मा साधु, चालीस हजार साध्वियाँ, ४ सौ चौदह पूर्वधारी, १५ सौ अवधिज्ञानी, १५ सौ वैक्रिय लब्धिवाले, १५ सौ केवली, एक हजार मनःपर्यवज्ञानी, ८ सौ वादलब्धिवाले, १ लाख ६६ हजार श्रावक और ३ लाख ३६ हजार श्राविकाएँ। इसी तरह गोमेध नाम का यक्ष और अंबिका नाम की शासनदेवी थी। विहार करते हुए अपना निर्वाणकाल समीप जान प्रभु रैवतगिरि (गिरनार) पर गये और वहां ५३६ साधुओं के साथ पादोपगमन अनशन कर : श्री तीर्थंकर चरित्र : 171 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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