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________________ कि, सोमशर्मा का सिर अचानक फट गया और वह जमीन पर गिर पड़ा। उसको सजा देने की इच्छा पूरी न हुई। उन्होंने उसके पैरों में रस्सी बंधवायी, उसे सारे शहर में घसीटवाया और उसको पशुपक्षियों का भोजन बनने के लिए जंगल में फिंकवा दिया। गजसुकुमाल की दशा से दुःखित होकर अनेक यादवों ने, वसुदेव के बिना नौ दशा)ने, प्रभु की माता शिवादेवी ने, प्रभु के सात सहोदर भाइयों ने, श्रीकृष्ण के अनेक पुत्रों ने, राजीमती ने, नंद की कन्या एकनाशा ने और अनेक यादव स्त्रियों ने दीक्षा ली। उसी समय श्रीकृष्ण ने नियम लिया था कि, मैं अब से किसी कन्या का ब्याह न करूंगा, इसलिए उनकी अनेक कन्याओं ने भी दीक्षा ले ली। कनकवती, रोहिणी और देवकी के सिवा वसुदेव की सभी पत्नियों ने दीक्षा ली। कनकवती संसार में रहते हुए भी वैराग्यमय जीवन बिताने लगी। इससे उसके घातिया कर्मों का नाश हुआ और उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। फिर वे अपने आप दीक्षा लेकर वन में गयी। एक महीने का अनशन कर उन्होंने मोक्ष पाया। . एक बार श्रीकृष्ण ने प्रभु से पूछा.– 'भगवन्! आप चौमासे में विहार क्यों नहीं करते हैं?' भगवान ने उत्तर दिया – 'चौमासे में अनेक जीवजंतु उत्पन्न होते हैं। विहार करने से उनके नाश की संभावना रहती है। इसीलिए साधु लोग चौमासे में विहार नहीं करते हैं। श्रीकृष्ण ने भी नियम लिया कि मैं भी अंबसे चौमासे में कभी बाहर नहीं निकलूंगा। एक बार नेमिनाथ प्रभु के साथ जितने साधु थे उन सबको श्रीकृष्ण द्वादशावर्त वंदना करने लगे। उनके साथ दूसरे राजा और वीरा नाम का जुलाहा-जो श्रीकृष्ण का बहुत भक्त था-भी वंदना करने लगे। और तो सब थककर बैठ गये; परंतु वीरा जुलाहा तो श्रीकृष्ण के साथ वंदना करता ही रहा। जब वंदना समाप्त हो चुकी तो श्रीकृष्ण ने प्रभु से विनती की – 'आज मैं इतना थका हूं कि जितना ३६० युद्ध किये उसमें भी नहीं थका था।' प्रभु ने कहा-'आज तुमने बहुत पुण्य उपार्जन किया है। तुमको क्षायिक सम्यक्त्व हुआ है, तुमने तीर्थंकर नामकर्म बांधा है, सातवीं नारकी के योग्य कर्मों को : श्री तीर्थंकर चरित्र : 169 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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