SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दिन बिताये और क्षुधा पिपासा आदि परिसह सह, दुर्द्धर तप कर, शरीर का त्याग किया। पांचवां भव : धनसेठ का जीव महाबल का शरीर छोड़कर श्रीप्रभनाम के देवलोक में ललितांग नामका देव हुआ। अनेक प्रकार के सुखोपभोगों में समय बिताया और आयु समाप्त होने पर देव-देह का त्याग किया। छट्ठा भव : - छट्ठा भव धनसेठ का जीव वहां से च्यवकर जंबूद्वीप के सागर समीपस्थ पूर्व विदेह में, सीता नामकी महानदी के उत्तर तट पर, पुष्कलावती नामक प्रदेश के लोहार्गल नगर के राजा सुवर्णजंघ की लक्ष्मी नामकी रानी की कूख से जन्मा। उसका नाम वज्रजंघ रक्खा गया। उसका ब्याह वज्रसेन राजा की गुणवती स्त्री की कूख से जन्मी हुई श्रीमती नाम की कन्या के साथ हुआ। वज्रजंघ जब युवा हुआ तब उसके पिता उसको राज्य-गद्दी सौंपकर साधु हो गये। वज्रजंघ न्यायपूर्वक शासन और राज्य-लक्ष्मी का उपभोग करने लगा। .. वज्रजंघ के श्वसुर वज्रसेन ने भी अपने पुत्र पुष्करपाल को राज्य देकर दीक्षा ले ली। कुछ काल के बाद सीमा के सामंत राजा लोग पुष्करपाल से युद्ध करने को खड़े हुए। वज्रजंघ अपने साले की मदद को गया। सामंतों को परास्तक जब वह वापिस लौटा तब मार्ग में उसे सागरसेन और मुनिसेन नामक दो मुनियों के दर्शन हुए। मुनियों की देशना सुनकर उसके हृदय में वैराग्य उत्पन्न हुआ। वह यह विचारता हुआ अपने नगर को चला कि, मैं जाते ही अपने पुत्र को राज्य देकर दीक्षा ग्रहण कर लूंगा। नगर में पहुंचा और वैराग्य की भावना भाता हुआ अपने शयनागार में सो गया। ___-उधर वज्रजंघ के पुत्र ने राज के लोभ से, धन का लालच देकर, मंत्रियों को फोड़ लिया और राजा को मारने का षडयंत्र रचा। आधी रात के समय राजकुमार ने वज्रजंघ के शयनागार में विषधूप किया। जहरीले तेज धूए ने राजा और रानी के नयनों में घुसकर उनका प्राण हर लिया। सातवाँ और आठवाँ भव : : श्री तीर्थंकर चरित्र : 5 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy