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________________ के नीचे हाथ में चित्र लेकर खड़े हुए एक चित्रकार को देखा। धनवंती की कमलिनी नामक दासी ने उसके हाथ से चित्र ले लिया। वह एक अद्भुत रूपवान राजकुमार का चित्र था। सखी ने वह चित्र राजकुमारी को दिया। उसको देखकर आश्चर्य के साथ राजकुमारी ने पूछा – 'यह चित्र किसका है? सुर-असुर मनुष्यों में ऐसा रूपवान कौन है?' .. यह सुन, चित्रकार हंसा और बोला – 'अचलपुर के राजा विक्रमधन के युवा पुत्र (धनकुमार) का यह चित्र है।' राजकुमारी उस रूप पर मोहित हो गयी। और उसने प्रतिज्ञा की कि मैं धन कुमार को छोड़ अन्य किसीके साथ शादी नहीं करूंगी। कन्या के पिता को यह बात मालूम हुई। उसने अपना दूत ब्याह का संदेश लेकर अचलपुर के राजा विक्रमधन के यहां भेजा। वहां जाकर उसने राजा का संदेशा कह सुनाया। राजा ने भी उसे स्वीकारा। धनकुमार और धनवती का ब्याह हो गया। दोनों पति-पत्नी आनंद से समय व्यतीत करने लगे। एक बार वसुंधर नामक मुनि से विक्रम धन ने राणि के स्वप्न का फल पूछा। मुनि ने उत्तर दिया – 'नौ भव कर तुम्हारा पुत्र मोक्ष में जायगा।' . वसंत ऋतु में धनकुमार धनवती के साथ एक सरोवर पर गया। वहां उन्होंने एक स्थान पर एक मुनिराज को अचेत पड़े देखा। अनेक शीतोपचारकर उन्होंने उनकी मूर्छा दूर की। मुनि के सचेत होने पर राजकुमार ने प्रणाम कर उनके अचेत होने का कारण पूछा। मुनि ने सुमधुर स्वर में कहा – 'हे राजन्! मैं अपने गुरु के साथ विहार कर रहा था, इस जंगल में रस्ता भूल गया। भटकते हुए, भूख, प्यास और थकान से मुझे मूर्छा आ गयी।' फिर मुनिराज ने श्रावक धर्म का उपदेश दिया। जिससे धनकुमार ने सम्यक्त्व सहित श्रावकधर्म स्वीकार कर लिया। राजकुमार महलों में गया और मुनि अन्यत्र विहार कर गये। राजकुमार ने चिरकाल तक संसार का सुख भोग, जयंत पुत्र को राज्य सौंप, वसुंधर नामक मुनि के पास दोनों ने दीक्षा ली और चिरकाल तक मुनिव्रत पाला। : श्री नेमिनाथ चरित्र : 146:
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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