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________________ तीन पल्योपम की और उनका शरीर तीन कोस ऊंचा था। तीसरा भव :- . श्रीषेणादि चार युगलियों की मृत्यु हुई और वे प्रथम कल्प में देव हुए। चौथा भव : (श्रीषेण का जीव अमिततेज हुआ। ) भरत क्षेत्र में वैताढ्य गिरि पर रथनूपुर चक्रवाल नाम का शहर था। उसमें ज्वलनजटी नाम का विद्याधर राजा राज्य करता था। उसके अर्ककीर्ति नाम का पुत्र और स्वयंप्रभा नाम की पुत्री थी । अर्ककीर्ति का ब्याह विद्याधरों के राजा मेघवन की पुत्री ज्योतिर्माला के साथ हुआ। श्रीषेण राजा का जीव सौधर्म कल्प से च्यवकर ज्योतिर्माला के गर्भ में आया। ज्योतिर्माला ने उस रात को, अपने तेज से आकाश को प्रकाशित करते हुए एक सूर्य को अपने मुख में प्रवेश करते देखा। समय पर पुत्र का जन्म हुआ। उसका नाम अमिततेज रखा गया। अमिततेज के दादा ज्वलनजटी ने अर्ककीर्ति को राज्य देकर जगन्नंदन और अभिनंदन नामक चारण ऋषि के पास दीक्षा ले ली। सत्यभामा का जीव भी च्यवकर ज्योतिर्माला के गर्भ से पुत्री रूप में हुआ। उसका नाम सुतारा रखा गया। उत्पन्न अर्ककीर्ति की बहन स्वयंप्रभा का ब्याह त्रिपृष्ठ वासुदेव के साथ हुआ था। अभिनंदिता का जीव सौधर्मकल्प से च्यवकर स्वयंप्रभा के गर्भ से पुत्ररूप में उत्पन्न हुआ। उसका नाम श्रीविजय रखा गया । शिखिनंदिता का जीव भी प्रथम कल्प से च्यवकर स्वयंप्रभा के गर्भ से पुत्री रूप में उत्पन्न हुआ। उसका नाम ज्योतिः प्रभा रखा गया। स्वयंप्रभा के एक विजयभद्र नाम का तीसरा पुत्र भी जन्मा। सत्यभामा के पति कपिल का जीव अनेक योनियों में फिरता हुआ चमरचंचा नाम की नगरी में अशनिघोष नाम का विद्याधरों का प्रसिद्ध राजा हुआ। अर्ककीर्ति ने अपनी पुत्री सुतारा का ब्याह त्रिपृष्ठ के पुत्र श्री विजय : श्री तीर्थंकर चरित्र : 101 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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