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________________ श्री आनन्दघन पदावली - ३५ ( ४ ) (राग - आसावरी ) साधो भाई समता संग रमीजे, अवधू ममता संग न कीजे ॥ संपत्ति नाहि नाहि ममता में रमता माम समेटे । खाट पाट तजि लाख खटाऊ, अंत खाक में लेटे || ।। अवधू.....।। १ ।। धन धरती में गाड़े बौरा, धूरि आप मुख लावे | मूषक साँप होइगो प्रखर, ताते अलछि कहावे || ।। अवधू..... ।। २ ।। समता रतनागर की ज़ाई, अनुभव चंद सुभाई । कालकूट तजि भव में सेणी, प्राप अमृत ले आई ।। ।। अवधू०. लोचन चरण सहस. चतुरानन, इनते बहुत श्रानन्दघन पुरुषोत्तम नायक, हितकरी कंठ O... ।। ३ ।। डराई । लगाई || ।। अवधू...............।। ४॥ अर्थ - हे साधु पुरुषो! हे सुज्ञ बन्धुप्रो ! समता के साथ रमण करो, राग-द्वेष का परित्याग करके सम-भावी बन जाओ । अब ममता की संगति मत करो। हे अवधू ! ममता में सच्ची सम्पत्ति नहीं है । स्त्री, पुत्र आदि तथा धन और यौवन में लुब्ध नहीं होना है । क्योंकि ममता में हमारी किसी प्रकार की उन्नति नहीं है । इसके साथ रमण करने से तो अपनी आत्म- सम्पत्ति सिमट कर अल्प हो जाती है । ममता का संग करने से कालिख लगती है । लाखों रुपये तथा स्वर्ण मुद्राएँ कमाने वाले अपनी रत्न जटित शय्या श्रौर बैठने के सिंहासन को यहीं पर छोड़ कर चले गये, अन्त में उनकी देह की राख हो गई । वे जिस मिट्टी में उत्पन्न हुए थे उसी में समा गये । अर्थात् अनेक चक्रवर्ती राजा आदि यहाँ से चले गये, परन्तु उनका सांसारिक वैभव उनके साथ नहीं गया । में एक छोटे बालक से लगाकर वृद्ध तक समस्त मनुष्यों के हृदय ममता व्याप्त है । मनुष्यों की दृष्टि में मलिनता उत्पन्न करने वाली एवं मनुष्यों में परस्पर संघर्ष कराने वाली ममता है ।
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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